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1 अगस्त विश्व स्तनपान सप्ताह - जानिए बच्चों के बेहतर शारीरिक-मानसिक विकास के लिए स्तनपान अत्यावश्यक क्यों है ? August 1 World Breastfeeding Week - Know why breastfeeding is essential for better physical-mental development of children?



प्रतिवर्ष 1 अगस्त से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह दुनिया भर में आयोजित किया जाता है। सरकारें, वैश्विक एजेंसियां, स्वयं सेवी संगठन और स्वास्थ्य - चिकित्सा से जुड़ी कंपनियां और संगठन कहीं सामूहिक और अधिकतर जगहों पर पृथक-पृथक कार्यक्रम आयोजित कर शिशु के लिए स्तनपान का महत्व बताते हैं। महिलाओं को स्तनपान एवं इस कार्य को दृढ़तापूर्वक एक साथ करने का समर्थन देता है साथ ही इसका यह उद्देश्य है कि कामकाजी महिलाओं को उनके स्तनपान संबंधी अधिकार के प्रति जागरूक और और नियोक्ताओं को ऐसी व्यवस्था करने को प्रेरित किया जाता है जिससे कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थलों पर स्तनपान कराने वाली महिलाओं को किसी भी प्रकार की असुविधा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हैल्थ आर्गनाइजेशन -डब्ल्यूएचओ) की सिफारिश के अनुसार नवजात शिशु के लिए पीला गाढ़ा चिपचिपाहट वाला मां के स्तन का दूध कोलेस्ट्रम संपूर्ण आहार होता है जिसे बच्चे के जन्म के तुरंत बाद 1 घंटे के भीतर ही शुरू कर देना चाहिए सामान्यता बच्चे को 6 महीने की अवस्था तक स्तनपान कराने की अनुशंसा की जाती है। शिशु को 6 महीने की अवस्था और 2 वर्ष अथवा उससे अधिक समय तक स्तनपान कराने के साथ-साथ पौष्टिक पूरक आहार भी देना चाहिए। मां के स्तन में दूध पैदा होना एक नैसर्गिक प्रक्रिया है जब तक बच्चा दूध पीता है तब तक स्तन में दूध पैदा होता है एवं बच्चे के दूध पीना छोड़ने के कुछ समय बाद अपने आप ही स्तनों दूध बनना बंद हो जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और ऐसे अध्ययन/शोध करने वाले संगठनों का कहना है कि स्तनपान कराने से मां और शिशु दोनों को फायदा होता है। शिशु को सुरक्षित सम्पूर्ण आहार होता है मां का दूध। मां के दूध में पाया जाने वाला कोलेस्ट्रम शिशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करता है। शिशु को रोगों से बचाता है। शिशु की वृद्धि अच्छे से होती है।

मालूम हो कि स्तनपान शिशु के जन्म के पश्चात एक स्वाभाविक क्रिया है। यह मनुष्य सहित सभी स्तनपायी प्राणियों में होता है। भारत और अन्य ऐशियाई देशों में अपने शिशुओं का स्तनपान लगभग सभी माएं कराती हैं, किंतु प्रथम बार माँ बनने वाली माताओं को शुरू में स्तनपान कराने हेतु सहायता की आवश्यकता होती है। स्तनपान के बारे में सही ज्ञान के अभाव में जानकारी न होने के कारण बच्चों में कुपोषण का रोग एवं संक्रमण से दस्त हो जाते हैं। कुछ महिलाएं हमेशा चुस्त-दुरुस्त और अपने आपको फिटफाट रखने की सनक के चलते अपने शिशु को स्तनपान नहीं करातीं। उनका मानना है कि निरंतर स्तनपान से उनके स्तन ढीले, बेडौल और अनाकर्षक हो जाते हैं। इसलिए वे पशुओं का दूध या डिब्बे वाला दूध शिशु को पिलाती हैं। कोई भी अन्य दूध मां के दूध की गुणवत्ता का नहीं होता। इसलिए अक्सर देखा जाता है कि बाहरी दुग्धपान करने वाले बच्चे काफी कुपोषित, अक्सर बीमार रहने वाले और कमजोर होते हैं। उनका मानसिक और शारीरिक विकास मां का दूध पीने वालों बच्चों की अपेक्षा कम होता है।

स्तनपान क्यों जरूरी है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन और ऐसे अध्ययन/शोध करने वाले संगठनों का कहना है कि शिशु के लिए स्तनपान संरक्षण और संवर्धन का काम करता है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति नए जन्मे हुए बच्चे में नहीं होती है। यह शक्ति मां के दूध से शिशु को हासिल होती है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन नामक तत्त्व होता है, जो बच्चे की आंत में लौह तत्त्व को बांध लेता है और लौह तत्त्व के अभाव में शिशु की आंत में रोगाणु पनप नहीं पाते। मां के से आए साधारण जीवाणु बच्चे की आंत में पनपते हैं और रोगाणुओं से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें पनपने नहीं देते। मां के दूध में रोगाणु नाशक तत्त्व होते हैं। माँ की आंत में वातावरण से पहुँचे रोगाणु, आंत में स्थित विशेष भाग के संपर्क में आते हैं, जो उन रोगाणु-विशेष के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक तत्त्व बनाते हैं। ये तत्त्व एक विशेष नलिका थोरासिक डक्ट से सीधे माँ के स्तन तक पहुँचते हैं और दूध के द्वारा बच्चे के पेट में। बच्चा इस तरह मां का दूध पीकर हमेशा अधिक स्वस्थ रहता है। माँ का दूध जिन बच्चों को बचपन में पर्याप्त रूप से पीने को नहीं मिलता, उनमें बचपन में शुरू होने वाली मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। बुद्धि का विकास उन बच्चों में दूध पीने वाले बच्चों की अपेक्षाकृत कम होता है। अगर बच्चा समय से पूर्व जन्मा (प्रीमेच्योर) हो, तो उसे बड़ी आंत का घातक रोग, नेक्रोटाइजिंग एंटोरोकोलाइटिस हो सकता है। अगर गाय का दूध पीतल के बर्तन में उबाल कर दिया गया हो, तो उसे लीवर (यकृत) का रोग इंडियन चाइल्डहुड सिरोसिस हो सकता है। इसलिए माँ का दूध छह-आठ महीने तक बच्चे के लिए श्रेष्ठ ही नहीं, जीवन रक्षक भी होता है। पशुओं का दूध या डिब्बे वाला दूध मां के दूध की अपेक्षा कम सुरक्षित, कम गुणों वाला और कुछ मामलों में हानिकारक भी हो सकता है। क्योंकि कंपनियां दूध को अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए कुछ रसायनिक तत्व उसमें डालते हैं। पशुओं का प्रायः स्वास्थ्य के मामले में ध्यान नहीं रखा जाता, असुरक्षित तरीके से दूध निकाला और गंतव्य तक पहुंचाया जाता है। फिर आजकल पशु पालन बेहद कम हो गया है, ऐसे में मांग की आपूर्ति कृत्रिम, जहरीले दूध की ज्यादा आपूर्ति हो रही है। अगर आप बाहर का दूध पिला रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप बच्चे को शुरु से कुपोषित और बीमार कर रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्तनपान बच्चों के स्वास्थ्य और अस्तित्व को सुनिश्चित करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है और फिर भी वर्तमान में, 6 महीने से कम उम्र के आधे से भी कम शिशुओं को विशेष रूप से स्तनपान कराया जाता है। डब्ल्यूबीडब्ल्यू - वर्ल्ड ब्रेस्टफीडिंग वीक यानी विश्व स्तनपान सप्ताह शुरुआत 1990 के इनोसेंटी घोषणा की स्मृति में हर 1-7 अगस्त को मनाया जाता है। डब्ल्यूबीडब्ल्यू  की शुरुआत 1992 में हुई थी, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों, महिलाओं और उनकी नौकरी या काम, ब्रेस्टमिल्क विकल्पों के विपणन के अंतर्राष्ट्रीय कोड, सामुदायिक समर्थन, पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था, विज्ञान, शिक्षा और मानवाधिकार सहित वार्षिक थीम शामिल थीं। 2016 से,डब्ल्यूबीडब्ल्यू सतत विकास लक्ष्यों के साथ जुड़ा हुआ है। 2018 में, विश्व स्वास्थ्य असेंबली के एक प्रस्ताव ने डब्ल्यूबीडब्ल्यू को एक महत्वपूर्ण स्तनपान प्रचार रणनीति के रूप में समर्थन दिया।

ज्ञातव्य है कि विश्व स्तनपान सप्ताह (डब्ल्यूबीडब्ल्यू) अभियान को डब्ल्यूएचओ, यूनिसेफ और कई स्वास्थ्य मंत्रालयों और नागरिक, सामाजिक, स्वास्थ्य-चिकित्सा संगठनों का समर्थन प्राप्त है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, 2018 में, विश्व स्वास्थ्य सभा के एक प्रस्ताव ने विश्व स्तनपान सप्ताह को एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संवर्धन रणनीति के रूप में समर्थन दिया।

इनोसेंटी घोषणा को 1990 के दशक में स्तनपान एक वैश्विक पहल विषय पर डब्ल्यूएचओ/यूनिसेफ नीति निर्माताओं की बैठक में प्रतिभागियों द्वारा तैयार और अपनाया गया था, जिसे यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (ए.आई.डी.) और स्वीडिश इंटरनेशनल डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा सह-प्रायोजित किया गया था। 1990 में 30 जुलाई से 1 अगस्त तक स्पेडेल डिगली इनोसेंटी, फ्लोरेंस, इटली में आयोजित किया गया। हर साल एक अलग थीम के साथ, विश्व स्तनपान सप्ताह मनाने का उद्देश्य ऐसे सक्षम वातावरण को बढ़ावा देना है जो महिलाओं को स्तनपान कराने में मदद करता है - जिसमें समुदाय और कार्यस्थल में समर्थन, सरकारी नीतियों और कानूनों में पर्याप्त सुरक्षा के साथ-साथ स्तनपान के लाभों और रणनीतियों पर जानकारी साझा करना शामिल है। वैश्विक स्वास्थ्य निकाय के अनुसार आधे अरब से भी ज्यादा बच्चे अतिकुपोषित हैं। विश्व स्तनपान सप्ताह में संपूर्ण स्वास्थ्य के प्रति भी जागरूक और प्रोत्साहन जोर दिया जाता है। गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के उपरांत मां को भरपूर पौष्टिक आहार लेने और मां और बच्चे के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चीजें खाने, खराब माहौल से बचने और कहीं भी बेझिझक स्तनपान कराने पर जोर दिया जाता है। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ्य बच्चे ही भविष्य के अच्छे नागरिक बन पाएंगे और अपनी रुचियों के अनुरूप कार्यक्षेत्र में बेहतर काम कर पाएंगे जिससे समाज और देश का विकास होगा। कमजोर, कुपोषित बच्चे अपनी शारीरिक समस्याओं में उलझे रहेंगे और एक बीमार समाज ही निर्मित करेंगे। इसलिए प्रत्येक महिला और उसके परिवार को मां के स्तनपान के महत्व को समझना और घर-परिवार, बच्चे के विकास को ध्यान में रखते हुए समुचित व्यवहार जीवनशैली का अनिवार्य अंग बनाना चाहिए।


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