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स्विट्जरलैंड में जनमत संग्रह में जलवायु बिल को समर्थन, तेल और गैस से छुटकारे, ईको फ्रेंडली विकल्पों पर जोर Support for climate bill in referendum in Switzerland, relief from oil and gas, emphasis on eco-friendly options



बर्न सिटी। करीब 3 दशक से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन का मुद्दा वैश्विक बहस के केंद्र में है। जलवायु परिवर्तन की दशा दिन प्रतिदिन खराब हो रही है। इसी के साथ मानव अस्तित्व के लिए पैदा हो रहे खतरों पर लगातार बात हो रही है। ऐसे में ही संकट में फंसा पूंजीवाद अपने मुनाफे को बढ़ाने को हर संभव प्रयत्न कर रहा है। दूसरी ओर इन्सान और जीव-जंतुओं को बचाने की मुहिम में लगे लोग भी तमाम खतरे उठाकर लगातार सरकारों और पूंजीवाद के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। स्विट्जरलैंड दुनिया भर की सरकारों, नीति-निर्माताओं के लिए एक शानदार नजीर पेश करने वाला देश बन गया है। यहां जनमत संग्रह में मनुष्य, जीव-जंतुओं और प्रकृति की बेहतरी के लिए प्रचलित ऊर्जा जरूरतों को कम करने और प्रकृति अनुकूल विकल्प खोजने की ओर अग्रसर है। लंबे समय से स्विट्जरलैंड के पिघलते ग्लेशियरों को देख रहे स्विस ग्लेशियर विज्ञानी, माथियाज हुस ने नतीजों पर खुशी जताते हुए ट्वीट किया कि जलवायु विज्ञान के तर्कों को सुना गया, यह बहुत खुशी की बात है। हुस ने कहा कि यह नतीजा नेताओं के लिए एक स्पष्ट संदेश है। सोशलिस्ट पार्टी की सांसद वालेरी पिले ने नतीजों को भावी पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण बताया। जनमत संग्रह की प्रक्रिया के तहत रविवार को लोगों के सामने नया जलवायु बिल रखा गया था। बिल में स्विट्जरलैंड को 27 साल के भीतर यानी 2050 तक कार्बन न्यूट्रल बनाने की मांग की गई. 59.1 प्रतिशत लोगों के समर्थन का अर्थ है कि स्विट्जरलैंड को बड़े स्तर पर तेल और गैस से पीछा छुड़ाना होगा. घरों के निर्माण और ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक ईको फ्रेंडली विकल्प खोजने होंगे।

इस बावत हुए एक अन्य जनमत संग्रह में स्विस वोटरों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कम से कम 15 फीसदी ग्लोबल टैक्स लगाने का समर्थन भी किया। इस टैक्स के पक्ष में वोट डालने वालों की संख्या 78.5 फीसदी रही। स्विट्जरलैंड की सत्ताधारी, स्विस पीपल्स पार्टी (एसवीपी) जलवायु बिल का विरोध करने वाली अकेली पार्टी थी। दक्षिणपंथी एसवीपी, बिजली की किल्लत और आर्थिक परेशानियों का हवाला देकर जलवायु बिल का विरोध कर रही थी। एसवीपी ने बिल को इलेक्ट्रिसिटी वेस्ट लॉ बताया। एसवीपी के मुताबिक 27 साल के भीतर कार्बन न्यूट्रल होने का मतलब है कि देश के सामने ऊर्जा संकट खड़ा होगा और बिजली का बिल आसमान छूने लगेगा। बिल का समर्थन करने वालों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के नतीजों से निपटने और ऊर्जा सुरक्षा व आजादी की रक्षा करने के लिए क्लाइमेट बिल की जरूरत है। स्विट्जरलैंड आल्प्स पहाड़ों की गोद में बसा है। रविवार को आए नतीजों पर निराशा जाहिर करते हुए एसवीपी के कैंपेन चीफ मिषाएल ग्राबर ने स्विस अखबार 20 मिनट्स से कहा, इस प्रस्ताव को बिल में शामिल करने की प्रक्रिया बाद में पेश की जाएगी। पार्टी के एक अन्य नेताओं ने इसे स्विस राजस्व के लिए एक बड़ी नाकामी बताया।

ज्ञातव्य है कि आर्थिक और तकनीकी रूप से संपन्न स्विट्जरलैंड के लिए ऊर्जा हमेशा से एक कमजोरी रही है। स्विट्जरलैंड दो तिहाई ऊर्जा विदेशों से खरीदता है. पेट्रोलियम तेल और गैस के लिए वह पूरी तरह आयात पर निर्भर है। यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद स्विट्जरलैंड में विदेशी ऊर्जा पर निर्भरता का मुद्दा केंद्र में आ गया। जलवायु कार्यकर्ताओं ने पहले 2050 तक तेल और गैस की खपत पर पूरी तरह बैन लगाने की मांग की. लेकिन सरकार ने इसे पूरी तरह खारिज कर दिया। इसके बदले प्रस्ताव दिया गया कि गैस और तेल से चलने वाले हीटिंग सिस्टम को ईको फ्रेंडली विकल्पों से बदलने के लिए 2.2 अरब डॉलर की वित्तीय मदद दी जाएगी। स्वच्छ ऊर्जा अपनाने में कारोबारों की भी सहायता की जाएगी। क्लाइमेट बिल पर हुई वोटिंग ने शहरी और ग्रामीण इलाकों के अंतर को भी सामने रखा। 26 में से 7 मंडलों ने बिल के विरोध में वोट डाला। बिल का विरोध करने वालों ने कहा पनचक्कियां प्राकृतिक सुंदरता को खराब करती हैं। कुछ ने जीवाश्म ईंधन को परिवहन सुरक्षा के लिए जरूरी बताया। जिनेवा जैसे शहर में करीब 75 फीसदी लोगों ने बिल का समर्थन किया। मतलब है कि जहां के लोग जलवायु प्रदूषण के खतरों से ज्यादा जूझ रहे हैं वे बिल के समर्थन में ज्यादा हैं और जिन्हें कम खतरा महसूस हो रहा है वे विरोध में नहीं हैं।

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