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कबीर जन्मोत्सव आयोजन नहीं होने दिया, प्रेम, भाईचारे, सद्भाव, समानता, मानवता विरोधी आरएसएस, भाजपा, मोदी, योगी एंड कंपनी पूंजीपतियों की सेवा में जुटी Kabir Janmotsav was not allowed to be organized, love, brotherhood, harmony, equality, anti-humanity RSS, BJP, Modi, Yogi and company engaged in the service of capitalists



वाराणसी। प्रेम, भाईचारे, सद्भाव, समानता, मानवता विरोधी आरएसएस, भाजपा, मोदी, योगी एंड कंपनी ने बनारस में कबीर जन्मोत्सव का आयोजन नहीं करने दिया। एक तरफ सरकार विदेशी पूंजीपतियों के प्रतिनिधियों, देशी धनकुबेरों की जब - तब मेहमाननवाजी करती रहती है, अपने सहयोगी समर्थकों के नफरत और हिंसा को बढ़ावा देने वालों के कार्यक्रमों के आयोजन में सहयोग करती है वहीं उसकी कोशिश होती है कि समाज में प्रेम, सदभाव, समानता, भाईचारा, मानवीयता को बढ़ावा देने वाले और सरकार की जनविरोधी नीतियों पर बात करने वाले आयोजन न हों। कबीर जन्मोत्सव समिति द्वारा प्रेस को जारी विज्ञप्ति के अनुसार, समिति 4 जून से बनारस के अलग-अलग बुनकर मोहल्लों में कबीरदास की 626वीं जयंती पर ताना बाना कबीर का नाम से अभियान चला रही थी। हजारों बुनकरों के बीच चले प्रचार ने 11 जून के अंतिम सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए उत्साह और ऊर्जा पैदा किया था। लेकिन इसे समाप्त करने का काम यूपी सरकार ने किया है। विज्ञप्ति के अनुसार, नाटी इमली के बुनकर कॉलोनी में सांस्कृतिक कार्यक्रम की अनुमति लेने के लिए 24 मई से लगातार यूपी पुलिस से बात की गई, लेकिन कार्यक्रम शुरू होने से एक घंटे पहले पुलिस द्वारा कार्यक्रम रद्द करने का दबाव बनाया गया। एक तरफ सरकार संत कबीर, रैदास, तुकाराम, बसवन्ना और अन्य भक्ति-सूफी संतों की मूर्तियों पर माल्यार्पण करती है, लेकिन दूसरी तरफ जनता को ऐसे आयोजन करने से रोकती है। इस ताजा घटना से पता चलता है कि वह भारत के इन कवियों और संतों की सोच पर बातचीत करने से डरती है।

विज्ञप्ति के अनुसार, कबीर जन्मोत्सव समिति ने सप्ताह भर के अभियान में नाटी इमली, वरुणा पुल, स्थित विश्वज्योति केंद्र, अमरपुर बठलोहिया, बाजार दीहा, पीली कोठी और भैंसासुर घाट पर इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए। वक्ताओं ने बताया कि संत कबीर बुनकर समुदाय से थे और उन्होंने अपनी कविताओं के जरिए अपने अनुभव लोगों से साझा किए थे। कबीर श्रम से जुड़े ज्ञान को प्राथमिकता देते थे। उनकी मुख्य चिंता यही थी कि लोग जाति-धर्म का भेदभाव मिटाकर आपस में मिलजुल इंसानियत के साथ रहें। इस अभियान में कई राज्यों से आए कबीरपंथी कलाकारों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। शहर के अन्य संस्थानों में भी कबीर जन्मोत्सव मनाया जा रहा है, तो बुनकर समुदाय अपने पुरखे कबीर को आखिर क्यों याद नहीं कर सकता? खुद सरकार भी कबीर के जन्मोत्सव पर कार्यक्रम आदि कर रही है तो बुनकरो पर यह दबाव क्यों?

विज्ञप्ति के अनुसार, 6 अप्रैल, 2023 के सर्कुलर के तहत 2006 से पावरलूमों को बिजली पर मिल रही फ्लैट रेट सब्सिडी की वापसी, बुनाई उद्योग में निवेश की कमी, मार्केटिंग के अवसर में गिरावट और बड़े कॉरपोरेट चेन वाराणसी बुनाई क्षेत्र के गंभीर संकट के लिए जिम्मेदार हैं। वे लाखों निवासियों को रोजगार देने वाले एक ऐसे क्षेत्र को कमजोर कर रहे हैं, जो बनारस की अर्थव्यवस्था को बनाए रखता है और जो उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न अंग है। बुनकरों के बीच सदियों से चले आ रहे पारंपरिक ज्ञान को समाज या सरकारों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है, ना ही इसे संरक्षित और विकसित किया गया है, इसलिए कई बुनकरों को काम की तलाश में पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। हमारे सांस्कृतिक अभियान के दौरान बुनकरों के बीच ये मुद्दे बार-बार उभरे।

विज्ञप्ति के अनुसार, इस आयोजन से शहर को कोई यातायात में परेशानी नहीं होने के बावजूद आयोजकों ने 24 मई से कई बार यूपी पुलिस आयुक्त से संपर्क किया था। पुलिस द्वारा अनुमति में देरी के कई बहाने बनाए गए, लेकिन हमें अभी तक कोई लिखित अस्वीकृति पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। हालांकि, इस बीच यूपी पुलिस द्वारा कार्यक्रम स्थल पर पहुंचकर और कार्यक्रम के लिए टेंट लगा रहे स्थानीय आयोजकों को धमकियां दी गई। एक ऐसा शासन जो विशेष रूप से भारतीय ज्ञान परंपराओं को आगे बढ़ाने की बात करता है, उसके द्वारा भारत के प्रगतिशील विचारकों का जश्न मनाने वाले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम को रोकने के लिए, हम यूपी सरकार द्वारा उठाए गए दमनकारी कदमों की निंदा करते हैं। -कबीर जन्मोत्सव समिति, मो. 9599078410, 7905245553, 9935498587

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