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जनविरोधी सरकारों के खिलाफ जनता के संघर्ष के प्रतीक अर्नेस्तो चे गुएवारा Ernesto Che Guevara, the symbol of the people's struggle against anti-people governments



14 जून 1925 में क्यूबा के क्रांतिकारी चे ग्वेरा का जन्म रोसारिओ, अर्जेंटीना में हुआ। उनका पूरा नाम अर्नेस्तो चे गुएवारा था लेकिन लोग उन्हें प्यार से चे बुलाते थे और आमतौर पर चे ग्वेरा लिखा और बोला जाता है। चे ने मेडिसिन की पढ़ाई की। वो चाहते तो डॉक्टर का पेशा अपनाकर आराम से अपनी जिंदगी गुजार सकते थे, लेकिन अपने आसपास भीषण गरीबी देखकर उन्होंने क्रांति का रास्ता चुना। करीब 23 साल की उम्र में उन्होंने मोटरसाइकिल से तकरीबन 10 हजार किलोमीटर की यात्रा की। इस दौरान वे दक्षिण अमेरिका के कई देशों में गए और उन्होंने भीषण गरीबी, मजदूरों की दुर्दशा और पूंजीवादी सत्ता का दमन देखा। क्रांतिकारी नेता, गुरिल्ला नेता, संगठनकर्ता, लेखक, सेना सिद्धांतकार, फिजीशियन और बहुप्रतिभासंपन्न चे मजदूर-मेहनतकश, किसान अपना सच्चा हमदर्द मानते हैं। यही वास्तव में चे थे भी।

अपनी इस यात्रा पर चे ने एक डायरी भी लिखी थी, जिसे उनकी मौत के बाद द मोटरसाइकिल डायरी के नाम से छापा गया। यात्रा से लौटते ही उन्होंने पूंजीवादी सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला कर किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात फिदेल कास्त्रो से हुई। दोनों ने मिलकर क्यूबा की तानाशाही सरकार को उखाड़ फेंकने की कसम खाई। उन्होंने गुरिल्ला लड़ाकों की एक फौज बनाई। धीरे-धीरे कास्त्रो और चे का आंदोलन तेजी पकड़ने लगा और साल 1959 में कास्त्रो और चे ने अपने साथियों ने क्यूबा में तख्तापलट कर दिया। इस क्रांति के नेता फिदेल कास्त्रो ही थे और उन्हीं के नेतृत्व में वहां कम्युनिस्ट सरकार बनी और चे को उद्योगमंत्री बनाया गया। 1959 में बतौर क्यूबा के उद्योगमंत्री चे भारत भी आए थे, प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के सहित कई मंत्रियों, किसानों, मजदूरों और विपक्ष के नेताओं से भी वे मिले थे।

चे क्यूबा में मंत्री नहीं बनना चाहते थे। उनका कहना था कि क्यूबा में तो क्रांति हो गई और मजदूर किसानों की सरकार बन गई और यह काम अब अन्य देशों में बढ़ाने के लिए उन्हें काम करना चाहिए। उन्होंने कई देशों के जनपक्षधर संगठनों, नेताओं को सहयोग-समर्थन दिया भी। मंत्री बनने के लिए जोर देने पर वे रात के अंधेरे में क्यूबा से भाग निकले थे लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया और किसी तरह मनाकर उन्हें मंत्री बना दिया गया। कुछ साल चे और कास्त्रो के बीच रूस और चीन के साथ संबंधों को लेकर मतभेद होने लगे। चे ने क्यूबा छोड़ दिया और दूसरे लैटिन अमेरिकी देशों में क्रांति करने निकल पड़े। कुछ समय वे कांगो में रहे उसके बाद बोलीविया आ गए।

अमेरिका समाजवाद का सबसे बड़ा दुश्मन हुआ। कम्युनिस्ट उसके निशाने पर रहते थे। विश्व कुख्यात अमेरिकी खुफिया सीआईए उनके पीछे पड़ी रही। बोलीविया के जंगलों से चे को गिरफ्तार कर लिया गया और 9 अक्टूबर 1967 को चे को गोली मार दी गई। चे ग्वेरा आज भी पूरी दुनिया में जनविरोधी सरकारों के खिलाफ संघर्ष के प्रतीक के तौर पर जाने जाते हैं।

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