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अडाणी की धोखाधड़ी का सच कभी सामने नहीं आ पाएगा, सरकार अडाणी को बचाने को हर हथकंडा अपना रही The truth of Adani's fraud will never be revealed, the government is adopting every trick to save Adani



नई दिल्ली। अडाणी की कंपनियों ने जो बेइमानियां की हैं, जो आरोप हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गये थे उनकी जांच कभी नहीं हो पाएगी, यह लगभग तय है। या तो सरकार ही गौतम अडानी है या सरकार ही गौतम अडानी की है। यह साफ है नरेंद्र मोदी की सरकार अपने सहयोगी-समर्थकों के किसी अपराध को अपराध नहीं मानती। अपने हर अपराधी को बचाने का प्रयत्न करती साफ दिखती है। अडाणी-हिंडनबर्ग केस की जांच के लिए बने सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट शुक्रवार को सार्वजनिक कर दी गई। पैनल ने कहा कि अडाणी के शेयरों की कीमत में कथित हेरफेर के पीछे सेबी की नाकामी थी, अभी इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। साफ है कि सरकार के खिलाफ बोलना किसी के बूते की बात नहीं। कोई साफ नहीं बता सकता। नाकामी थी या नाकामी नहीं थी। इसके बजाय घुमा फिराकर कहा गया कि किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। इसका मतलब साफ है कि भारत की सबसे बड़ी आर्थिक धोखाधड़ी का सच कभी सामने नहीं आ पाएगा। सरकार ने अडाणी को ढाई लाख करोड़ का लोन दिलवाया है। एलआईसी और तमाम अन्य कंपनियों का अडाणी के चक्कर में भट्टा बैठ गया है। निवेशकों के लाखों करोड़ डूब गये हैं लेकिन सरकार की चिंता अडाणी को बचाने की है।

कमेटी ने ये भी कहा कि ग्रुप की कंपनियों में विदेशी फंडिंग पर सेबी की जांच बेनतीजा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में 6 मेंबर की एक्सपर्ट कमेटी बनाई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट 6 मई को सौंप दी थी। कमेटी ने रिपोर्ट में कहा कि सेबी को संदेह है कि अडाणी ग्रुप में निवेश करने वाले 13 विदेशी फंडों के प्रमोटर्स के साथ संबंध हो सकते हैं। अडाणी ग्रुप के शेयरों में वॉश ट्रेड का कोई भी पैटर्न नहीं मिला है। वॉश ट्रेड यानी वॉल्यूम बढ़ाने के लिए खुद ही शेयर खरीदना और बेचना।

कुछ संस्थाओं ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के प्रकाशित होने से पहले शॉर्ट पोजीशन ली थी। जब शेयर के भाव गिरे तो इसे खरीदकर मुनाफा कमाया। शॉर्ट पोजीशन का मतलब- एक कंपनी का भाव अभी 100 रुपए है, ट्रेडर के पास इस कंपनी के शेयर नहीं है, लेकिन उसे लगता है कि भाव नीचे जाएगा तो वो उसे 100 रुपए पर बेच देता है। कुछ दिन बाद शेयर का भाव 90 रुपए पर आ जाता है। ट्रेडर इस भाव पर इसे खरीदकर 10 रुपए का मुनाफा बना लेता है। इसे शॉर्ट सेलिंग भी कहते हैं। 24 जनवरी को हिंडनबर्ग रिसर्च ने अडाणी ग्रुप को लेकर एक रिपोर्ट छापी थी। रिपोर्ट में ग्रुप पर मनी लॉन्ड्रिंग से लेकर शेयर मैनिपुलेशन जैसे आरोप लगाए गए थे। रिपोर्ट के बाद ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली थी। 

आरोप सामने आने के बाद मनोहर लाल शर्मा ने याचिका में हिंडनबर्ग रिसर्च के फाउंडर नाथन एंडरसन और भारत में उनके सहयोगियों के खिलाफ जांच करने तथा मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी। उन्होंने इस मामले पर मीडिया कवरेज पर रोक की भी मांग की गई थी। विशाल तिवारी ने सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता वाली एक कमेटी बनाकर हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग की थी। तिवारी ने अपनी याचिका में लोगों के उन हालातों के बारे में बताया था जब शेयर प्राइस नीचे गिर जाते हैं। इसके अलावा जया ठाकुर ने इस मामले में भारतीय जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक की भूमिका पर संदेह जताया था। उन्होंने एलआईसी और एसबीआई के अडाणी एंटरप्राइजेज में भारी मात्रा में सार्वजनिक धन के निवेश की भूमिका की जांच की मांग की थी। मुकेश कुमार ने अपनी याचिका सेबी, प्रवर्तन निदेशालय आयकर विभाग, डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस से जांच के निर्देश देने की मांग भी की थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो कमेटी बनाई थी, उसके मुखिया रिटायर्ड जज एएम सप्रे हैं। उनके साथ इस कमेटी में जस्टिस जेपी देवधर, ओपी भट, एमवी कामथ, नंदन नीलेकणि और सोमशेखर सुंदरेसन शामिल हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की बेंच ने कमेटी बनाने का यह आदेश 2 मार्च को दिया था। इसके अलावा सेबी को 2 पहलुओं पर जांच करने के लिए कहा था- क्या सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन रूल्स के नियम 19 (।) का उल्लंघन हुआ? क्या मौजूदा कानूनों का उल्लंघन कर स्टॉक की कीमतों में कोई हेरफेर हुआ? मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग से जुड़ा है नियम 19 (।) कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन रूल्स का नियम 19 (।) शेयर मार्केट में लिस्टेड कंपनियों की मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग से जुड़ा है। भारतीय कानून में किसी भी लिस्टेड कंपनी में कम से कम 25 प्रतिशत शेयरहोल्डिंग पब्लिक यानी नॉन इनसाइडर्स की होनी चाहिए।

मालूम हो कि हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि गौतम अडाणी के भाई विनोद अडाणी विदेश में शेल कंपनियों को मैनेज करते हैं। इनके जरिए भारत में अडाणी ग्रुप की लिस्टेड और प्राइवेट कंपनियों में अरबों डॉलर ट्रांसफर किए गए।

सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपने के लिए 14 अगस्त तक का समय दिया है। कोर्ट ने इससे पहले 2 मार्च को सेबी को जांच के लिए 2 महीने का समय दिया था। यानी उसे 2 मई तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी। सेबी ने कहा था कि अडाणी ग्रुप के ट्रांजैक्शन काफी कॉम्प्लेक्स है, इसलिए जांच के लिए उसे कम से कम 6 महीने का अतिरिक्त समय चाहिए। इसका मतलब साफ है कि सरकार अडाणी पर लगे आरोपों की सच्चाई सामने नहीं आने देना चाहती 2024 के चुनाव से पहले। वह सुप्रीम कोर्ट से इसलिए लगातार लंबा समय मांग रही है। जबकि आजकल ज्यादातर लेन-देन की दुनिया भर की बैंकों और वित्तीय संस्थानों से जानकारी एक महीने में मिल सकती है। मोटा-मोटी इसका हिसाब एक महीने में लगाया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की सौंपी गई जांच रिपोर्ट पर कोर्ट ने कहा था कि उसे इस रिपोर्ट के विश्लेषण के लिए समय चाहिए। कमेटी की रिपोर्ट पक्षकारों को भी दी जाएगी। रिपोर्ट पर अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी।

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