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हिमालयी पर्यावरण संस्थान की वन संसाधनों के संरक्षण, उद्यानीकरण, परंपरा और विज्ञान के समन्वय पर हितधारकों के साथ परामर्श बैठक में हुआ विमर्श Discussions held in a consultation meeting with stakeholders on conservation of forest resources, horticulture, coordination of tradition and science of GB Pant national Himalayan Environment Institute Kosi-katarmal Almora



अल्मोड़ा। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी, कटारमल अल्मोड़ा ने कैलाश भू-क्षेत्र में बोन चैलेंज 2018 के तहत आइ॰यू॰सी॰एन॰ के सहयोग से रेस्टोरेशन ऑपर्च्युनिटी एसेसमेंट मेथोडोलॉजी के तहत  देश की पहली प्रदर्शन क्षेत्र की स्थापना की है। 31.12.2022 और 01.01.2023 को वन संसाधनों एवं जैव विविधता संरक्षण हेतु हितधारकों के साथ कार्यशाला का आयोजन संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर सुनील नौटियाल, वैज्ञानिकों, शोधार्थियों एवं हितधारकों की उपस्थिति में किया गया। हिमालयी वन संस्थानों एवं जैव विविधता संरक्षण के लिए हितधारकों से परामर्श विषय पर वन संसाधनों एवं जैव विविधता संरक्षण हेतु क्रमशः ग्राम दिगतोली और रावलगाँव, जिला पिथौरागढ़ में किया गया।

संचालन संस्थान के वैज्ञानिक डॉ॰ आशीष पांडेय ने किया गया और संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. केएस कनवाल द्वारा कार्यशाला में उपस्थित संस्थान से आए निदेशक, जैव विविधता प्रबंधन केंद्र के विभागाध्यक्ष डा॰ आई॰डी॰ भट्ट, वैज्ञानिक तथा सभी प्रतिभागियों और हितधारकों का स्वागत एवं अभिनंदन किया गया। डा॰ आई॰डी॰ भट्ट, केंद्र-प्रमुख द्वारा कार्यशाला के कार्यक्रम की रूपरेखा तथा संस्थान द्वारा किए जा रहे वन सन-साधनों एवं जैव विविधता संरक्षण के विभिन्न कार्यक्रम एवं उनके बारे में अवगत कराया गया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार बहुउपयोगी पौधे जैसे तेजपात, बांज तथा आंवला इत्यादि के पौध रोपण से ग्रामीणों की आजीविका को संवर्धित किया जा सकता है तथा अपने वन संसाधनों एवं जैव विविधता को बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार औषधीय जड़ी बूटी के कृषिकरण द्वारा किसानों की आजीविका बढ़ाई जा सकती है।

परामर्श के मुख्य बिन्दु बंजर भूमि का पुनर्स्थापन, कम हो रहे जल-स्रोतो का पुनर्जीवन बूढ़े (स्थिर/क्लाइमैक्स) हो चुके वनो में वृक्षारोपण, बढ़ता वन्य-जीव संघर्ष आदि रहे । 

संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सुनील नौटियाल ने हिमालयी क्षेत्र में किए जा रहे शोध कार्यों तथा जलवायु परिवर्तनों से हो रहे विभिन्न प्रभावों तथा उनसे निपटने संबंधित ज्ञान से समस्त ग्राम वासियों को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि परंपरागत ज्ञान को वैज्ञानिक परिभाषा देने की आवश्यकता है, जिससे उसे वैज्ञानिक मूल्यों से जोड़ा जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे हिमालयी क्षेत्र में विगत कई वर्षों से कृषिकरण की तकनीक में बदलाव आया है, जिससे कृषि की उपज में भारी मात्रा में गिरावट आई है, और उन्होने कहा कि हमें उपरोक्त हेतु कैसे सामाजिक-व्याहरिकता लाने की जरूरत हैं। 

नौटियाल ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर हम कुछ इस तरह की योजना बनाए जिसमें हम हाट कालिका मंदिर में सिर्फ वही प्रसाद चड़ाएँ जो हमारी परंपरागत फसलों से बना हो, जिससे हमारी परंपरागत कृषि भी बची रहेगी और हमारी आजीविका भी बढ़ेगी। वन्यप्राणी संघर्ष का उपाय बताते हुए उन्होने बताया कि वर्तमान में मानव वन्यप्राणी संघर्ष के कारण पारंपरिक खेती करना संभव नहीं हो पा रहा है। इस समस्या को भूमिगत फसलों जैसे अदरक, हल्दी तथा वन हल्दी आदि का उत्पादन करके तेज गति से बंजर हो रही खेतीहर भूमि को अवक्रमण से बचाया जा सकता है, जो विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबढ़दाताओं  को पूरा करने में सहयोग करेगी। उनके द्वारा प्रदर्शन क्षेत्र मे रोपित बहुउद्देशीय पौधों का आकलन भी प्रस्तुत किया गया। निदेशक ने सुझाव दिया कि आने वाले वर्ष की कार्यप्रणाली की रूपरेखा भी तैयार की जाए, जिससे भविष्य में इस प्रकार के सफल मॉडल का अन्य क्षेत्रों में भी दोहराया जा सके। 

पूर्व ब्लाक प्रमुख पूरन चन्द्र पाटनी के कहा कि आज परम्परागत ज्ञान की कमी हो रही है जिस कारण कृषि प्रभावित हुई है. पशुओं को बाजार का चारा खिलाने से उनका खान पान बदल गया है. उन्होंने बहुउपयोगी पौधों के रोपण से होने वाले लाभों की बात भी की। सरपंच दिगतोली मदन मोहन पाटनी ने कहा कि उन्होंने संस्थान के साथ मिल कर कार्य किया है तथा भविष्य में भी वो संस्थान को पूर्ण सहयोग करेंगे.

ग्राम गरुडा के सरपंच मोहन चन्द्र पांडे ने कहा कि हमारे क्षेत्र में चीड की बहुतायत है अतः हमको तेजपात, आंवला, चाइनीज बैम्बू आदि का वृक्षारोपण अधिकता से करना होगा. उन्होंने कहा कि खेत खलिहान बंजर हो रहे हैं, पैदावार भी कम होती जा रही है. जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव फसल चक्र व बागवानी पर अत्यधिक देखा जा रहा है जैसे कि पूर्व में जहाँ संतरा, माल्टा होता था वहां अब आम होने लगे हैं. उन्होंने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुसार फसल व पौधों का चयन करने पर बल दिया. दिगतोली ग्राम की प्रधान श्रीमती पुष्पा पाटनी ने कहा कि हमें बहुउपयोगी पौधों को अपनी बंजर भूमि में रोपित करने की और अधिक आवश्यकता है. उन्होंने इस कार्य में गाँव के महिला समूह के सहयोग का आश्वासन दिया.

रावल गाँव के षष्ठी सिंह रावल ने बताया कि पूर्व में संस्थान के निदेशक डा० आर०एस० रावल द्वारा जो परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया गया था उसे पूरा करने के आवश्यकता है. उन्होंने हाट कालिका मंदिर के आस पास की बंजर भूमि में बहुउपयोगी पौधों को रोपित करने की आवश्यकता पर बल दिया। सभासद नीरज रावल, मंदिर कमेटी के कोषाध्यक्ष गजेन्द्र सिंह रावल एवं श्रीमती गंगा देवी ने भी आने वाले समय में अन्य बहुउपयोगी पौधों को क्षेत्र की आस पास की बंजर भूमि में रोपित किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया.

बैठकों में कैलाश भूक्षेत्र के चंडाक आंवलाधार एवं हाटकालिका क्षेत्र में वन संसाधनों एवं जैव विविधता बचाने हेतु एक रणनीति तैयार की गयी जिसमें विभिन्न प्रकार के बहुउपयोगी प्रजातियों, जड़ी बूटी, उद्यानीकरण वाले पौधे एवं चारा पत्ती वाले पौधों का रोपण कर अवक्रमित भूमि को पुनर्स्थापित करना, स्थानीय संसाधनों द्वारा बने खाद्य पदार्थों को प्रसाद के रूप में हाट कालिका मंदिर में चढ़वाना, पूजा के लिए फूलों की खेती को बढ़ावा देना तथा विभिन्न स्थानीय संसाधनों का सदूपयोग कर आजीविका वृद्धि करना आदि शामिल थे . 

संस्थान के वैज्ञानिक डॉ आशीष पांडेय द्वारा समस्त प्रतिभागियों, वैज्ञानिकों, संस्थान के निदेशक महोदय तथा शोधार्थियों को धन्यवाद किया। कार्यशाला में ग्राम दिग्तोली से 55 और रावलगाँव से  47  हितधारकों ने प्रतिभाग किया और संस्थान द्वारा कार्यों कि सराहना कि और संस्थान से आशा कि गयी कि आने वाले भविष्य में भी संस्थान का सहयोग इसी प्रकार से बना रहेगा। दो दिवसीय कार्यशाला में दिगतोली ग्राम से पूर्व ब्लाक प्रमुख पूरन चन्द्र पाटनी, दिगतोली के सरपंच मदन मोहन पाटनी, ग्राम गरुडा के सरपंच मोहन चन्द्र पांडे, दिगतोली ग्राम की प्रधान श्रीमती पुष्पा पाटनी, रावल गाँव की श्रीमती षष्ठी सिंह रावल, सभासद नीरज रावल तथा मंदिर कमेटी के कोषाध्यक्ष गजेन्द्र सिंह रावल, राका गाँव के ग्राम प्रधान नरेन्द्र सिंह रावल ने प्रतिभाग किया. संस्थान से कार्यक्रम में डॉ॰ लक्ष्मण सिंह, डॉ॰ शायनी ठाकुर, डॉ॰ पुष्पा केवलनी, दीप चंद तिवारी, नरेंद्र परिहार, प्रियदर्शी मौर्य, दीपक सिंह नेगी,सिमरन, प्रकाश बिष्ट, हिमांशु बर्गली आदि मौजूद रहे।

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