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अस्पतालों में पर्याप्त उपचार, दवा, स्टाफ, संसाधनों का अभाव, डीएम पंत ने दिए झोलाछाप डाॅक्टरों के खिलाफ अभियान के निर्देश Lack of adequate treatment, medicine, staff, resources in hospitals, DM Pant gave instructions for campaign against quack doctors



रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) उत्तराखंड, (सू.वि.)। जिलाधिकारी युगल किशोर पंत ने जिला कार्यालय सभागार में क्लीनिकल स्टेबलिस्मेंट एक्ट के अन्तर्गत बैठक में अधिनस्थों को निर्देश दिए कि वे जनपद में फरजी एवं झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ अभियान चलाना सुनिश्चित करें।

जिलाधिकारी ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को निर्देशित करते हुए कहा कि जनपद के भीतर किसी भी व्यक्ति के जीवन से खिलवाड़ न हो। उन्होंने निर्देशित करते हुए कहा कि फरजी एवं झोलाछाप डॉक्टरों की धरपकड़ तेज की जाये तथा किसी भी क्लीनिक, होस्पिटल के बिना पंजीकरण चलते पाये जाने पर होस्पिटल को सीज करने के साथ ही सम्बन्धितों के खिलाफ विधिक कार्यवाही अमल में लाई जाये। उन्होंने निर्देशित करते हुए कहा कि होस्पिटल एवं क्लीनिकों में डॉक्टर्स का नाम शॉर्ट फॉर्म के स्थान पर पूरा नाम लिखवाने पर भी ज्यादा से ज्यादा ध्यान दिया जाये।

जिलाधिकारी ने होस्पिटल पंजीकरण हेतु निर्धारित पोर्टल पर ही डॉक्यूमेंट्स की सॉफ्ट कॉपी अपलोड कराने की व्यवस्था कराने हेतु पोर्टल बनाने वाली कम्पनी से पत्राचार करने के निर्देश भी स्वास्थ्य महकमें के आला अधिकारियों को दिये। उन्होंने बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण हेतु काशीपुर तथा रूद्रपुर में कैम्प लगाने के निर्देश क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी को दिये। जिलाधिकारी ने होस्पिटलों के अस्थायी आवेदनों के निस्तारण हेतु कमेटी बनाने के निर्देश स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दिये। जिलाधिकारी ने जनपद में किसी भी डॉक्टर के संदिग्ध होने की सूचना प्रशासन को देने में सहयोग करने की अपील आईएमए के पदाधिकारियों सहित जनता से की।

सीएमओ डॉ.सुनीता रतूड़ी चुफाल, एसीएमओ डॉ.हरेन्द्र मलिक, जिला आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी डॉ.आशुतोष पन्त, आईएमए के प्रतिनिधि डॉ.सुनील जोशी, डॉ.तरूण, सहि डॉ.भारत भूषण, डॉ.नरेश गोस्वामी, डॉ.अमित मिश्रा आदि उपस्थित थे।

मालूम हो कि सरकारी अस्पतालों में स्टाफ, डाॅक्टर्स, दवा और अन्य संसाधनों का भारी अभाव है। प्राइवेट बड़े क्लिनिकों के पर्चे ही 200 से 500 रुपये तक हैं। इसके बाद जांच और दवा लेने में हजारों रुपये लग जाते हैं। नोटबंदी और लाॅकडाउन के बाद से लोगों की हालत बेहद खस्ता है। गली मोहल्ले के डाॅक्टर आज भी 30 से लेकर 100 रुपये तक में बेहतर इलाज कर देते हैं जिससे लाखों लोगों का श्रम, समय, पैसा और जीवन बच जाता है लेकिन कुछ मीडिया वाले और प्रशासन गली मोहल्ले के डाॅक्टरों के पीछे पड़े रहते हैं। यह सरकार पर सवाल नहीं उठाते कि वह जनता को पर्याप्त और सर्वसुलभ चिकित्सा-स्वास्थ्य सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध करातीं।


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