28 अक्टूबर 2011 को लखनऊ में श्रीलाल शुक्ल (जन्म 31 दिसंबर 1925, अतरौली, अलीगढ़) में निधन हुआ। श्रीलाल शुक्ल प्रखर, प्रसिद्ध हिंदी लेखक थे, खासतौर पर व्यंग्य लेखक। श्रीलाल शुक्ल उत्तर प्रदेश सरकार में पीसीएस अधिकारी रहे और बाद में आईएएस यानी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हो गए। उन्होंने 25 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें राग दरबारी, मकान, सूनी घाटी का सूरज, पहला पड़ाव और बिसरामपुर का संत शामिल हैं। श्रीलाल शुक्ल अपने तीखे व्यंग्य से लोगों का ध्यान आकर्षित करने में बहुत सफल रहे।
लेक्चर का मजा तो तब है जब सुननेवाले भी समझें कि यह बकवास कर रहा है और बोलनेवाला भी समझे कि मैं बकवास कर रहा हूँ।
वर्तमान शिक्षा-पद्धति रास्ते में पड़ी हुई कुतिया है, जिसे कोई भी लात मार सकता है।
जो खुद कम खाता है, दूसरों को ज्यादा खिलाता है, खुद कम बोलता है, दूसरों को ज्यादा बोलने देता है, वही खुद कम बेवकूफ बनता है और दूसरे को ज्यादा बेवकूफ बनाता है।
पिछली पीढ़ी के मन में अगली पीढ़ी को मूर्ख और अगली के मन में पिछली को जोकर समझने का चलन वहाँ इतना बढ़ गया था कि अगर क्षेत्र साहित्य या कला का न होता, तो अब तक ग्रह युद्ध हो चुका होता।
अपने देश का कानून बहुत पक्का है, जैसा आदमी वैसी अदालत।
इस देश में जाति प्रथा को खत्म करने की यही एक सीधी सी तरकीब है। जाति से उसका नाम छीनकर उसे किसी आदमी का नाम बना देने से जाति के पास और कुछ नहीं रह जाता। वह अपनेआप खघ्त्म हो जाती है।
हम असली भारतीय विद्यार्थी हैं हम नहीं जानते कि बिजली क्या है, नल का पानी क्या है, पक्का फर्श किसको कहते हैं सैनिटरी फिटिंग किस चिड़िया का नाम है। हमने विलायती तालीम तक देसी परंपरा में पायी है और इसीलिए हमें देखो, हम आज भी उतने ही प्राकृत हैं ! हमारे इतना पढ़ लेने पर भी हमारा पेशाब पेड़ के तने पर ही उतरता है, बंद कमरे में ऊपर चढ़ जाता है।
आज रेलवे ने उसे धोखा दिया था. स्थानीय पैसेंजर ट्रेन को रोज की तरह 2 घंटा लेट समझकर वह घर से चला था, पर वह डेढ़ घंटे लेट होकर चल दी थी.
उर्दू कवियों की सबसे बड़ी विशेषता उनका मातृभूमि प्रेम है। इसीलिए मुंबई और कोलकाता में भी वे अपने गांव या कस्बे का नाम अपने नाम के पीछे बांधे रहते हैं और उसे खटखटा नहीं समझते। अपने को गोंडवी, सलोनवी और अमरोहवी कह कर वे कोलकाता मुंबई के कूप मंडूक लोगों को इशारे से समझाते हैं कि सारी दुनिया तुम्हारे शहर तक ही सीमित नहीं है। जहां मुंबई है वहां गोंडा भी है।
अगर हम खुश रहें तो गरीबी हमें दुखी नहीं कर सकती और गरीबी को मिटाने की असली योजना यही है कि हम बराबर खुश रहें।
पर जिस तरह विरोधी पक्ष की चीख-पुकार और गाली-गलौज को निस्सार मानकर असली मिनिस्टर कुनबापरस्ती के रास्ते पर सीधा चलता रहता है, उसी निर्लिप्त भाव से वैद्यजी भी इन आवाजों को अनसुना कर के शंकर जी की प्रार्थना में लगे रहे .
प्रस्तुति: एपी भारती (पत्रकार, संपादक पीपुल्स फ्रैंड, रुद्रपुर, उत्तराखंड)
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