पंतनगर विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्यारेलाल पर श्रद्धांजलि व वैचारिक कार्यक्रम स्मारिका एक अभूतपूर्व समय, अंधेरे का दौर और एक जनपक्षधर बुद्धिजीवी का विमोचन
रुद्रपुर (ऊधम सिंह नगर) उत्तराखंड, 7 दिसंबर (मुकुल)। हम अपने आप में मगन हैं कि हम होशियार हैं और क्या सही है क्या गलत है, यह हम जानते हैं। जबकि हकीकत इससे उलट है, हमें पूंजीपति, माफिया, सत्ता-राजनीति और धर्म का गठजोड़ नियंत्रित कर रहा है, हमारे विचारों को तय कर रहा है, हम ठगे जा रहे हैं और हमें इसका पता भी नहीं है। यही बात निकल कर आई एक परिचर्चा में जिसमें स्वतंत्र अध्ययनकर्ताओं, बुद्धिजीवियों ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए। पंतनगर विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक डॉ. प्यारेलाल के स्मृति शेष होने की पहली वार्षिकी पर स्थानीय नगर निगम सभागार में आयोजित श्रद्धांजलि व वैचारिक कार्यक्रम स्मारिका’ - एक अभूतपूर्व समय, अंधेरे का दौर और एक जनपक्षधर बुद्धिजीवी का जीवन तथा कृषि और खाद्यान्न केंद्रित लेख और अनुवाद भूख और मुनाफे की नूराकुश्ती का लोकार्पण किया गया। इसके अलावा साम्राज्यवाद और मानसिक नियंत्रण का तंत्र विषय पर सारगर्भित परिचर्चा हुई। वरिष्ठ जनकवि बाली सिंह चीमा ने अपनी नज्में पेश कीं।
परिचर्चा में वक्ताओं ने कहा कि डॉ. प्यारेलाल मानवीय संवेदना से लबरेज, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, एक प्यारे कॉमरेड थे। उनका अध्ययन अगाध, जिज्ञासा असीम और मार्क्सवादी निष्ठा अटूट थी। गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में कृषि क्षेत्र में अहम शोध किए। उनका सामाजिक परिवर्तन की जद्दोजहद से लगभग चार दशक का जुड़ाव, उनकी जिजीविषा और उनका योगदान हम सबके लिए प्रेरणास्पद है। उन्होंने महत्वपूर्ण लेखन और तमाम जरूरी लेखों-किताबों का अनुवाद किया। लंबी बीमारी से जूझते हुए उनका 6 दिसंबर 2024 को दुखद निधन हो गया था।
साम्राज्यवाद और मानसिक नियंत्रण का तंत्र विषय पर चर्चा की शुरुआत करते हुए प्रोफेसर भूपेश कुमार सिंह ने कहा कि दुनिया को अपने नियंत्रण में लेने के लिए अमेरिकी साम्राज्यवाद ने तीन गतिविधियों पूँजी निवेश का विस्तार, भारी सैन्य व्यय व विदेशी सहायता कार्यक्रम को प्रमुख हथियार के रूप में प्रयुक्त किया। उन्होंने जनमानस को नियंत्रित करने के लिए प्रचार माध्यमों के जबर्दश्त इस्तेमाल की प्रणाली का खुलासा किया। कहा कि आज विचारों के नियंत्रण तंत्र एक जन संपर्क उद्योग का रूप ले चुका है जो जनता के मस्तिष्क को अपने अनुरूप ढ़ालने के लिए मनोवैज्ञानिक कौशल के बादशाह बन चुके हैं। इसके लिए शिक्षा, धर्मोपदेश, विज्ञापन, मीडिया, राजनीति आदि अनेक तरीके इस्तेमाल होते हैं। ये इतने ताकतवर व प्रभावी हैं कि व्यवस्था के शिकार अपनी दुर्दशा को स्वाभाविक और किस्मत की मार मान लेते हैं।
वक्ताओं ने कहा कि पूँजीवाद मिथकों को गढ़ता है और लोगों पर प्रभुत्व स्थापित करता है। बेहद कुशलता से मिथक जनता की चेतना में धीरे-धीरे पैठा दिये जाते हैं। अधिकतर लोगों को इस बात का इल्म ही नहीं होता है कि उन्हें हेरा-फेरी का शिकार बनाया जा रहा है। इसका परिणाम होता है- व्यक्ति की निश्क्रियता।
वक्ताओं ने भारतीय समाज की मौजूद स्थिति को गंभीर बताते हुए कहा कि कैसे भारत में जनविरोधी नव उदारवादी नीतियाँ लागू होने के साथ संकट गहराता गया, जिंदगी बेहाल होती गई और धर्म-राष्ट्रीयता, मंदिर-मस्जिद, गोरक्षा, लबजेहाद, धर्मांतरण, मॉब लिंचिंग, कश्मीर-पाकिस्तान-चीन आदि के शोर में निजीकरण-छंटनी-बंदी, विकराल रूप लेती बेरोजगारी, भयावह महँगाई जैसे असल मुद्दे गायब होते गए। जनता को गुमराह करने के नए अस्त्र विकसित हुए जो नफरत फैलाने में सिद्धहस्त होते गए और लंपटता व उन्माद चरम पर पहुँच गया। तमाम तरीकों से जनता को भीड़ तंत्र में बदलकर मूल मुद्दों से ही भटका दिया गया। इसके मायाजाल में उलझी जानता बढ़ती तबाही को भूलकर काल्पनिक शत्रुओं के उन्मूलन में सक्रिय हो गई।
वक्ताओं ने कहा कि यह इस दौर की वह परिघटना है, जिससे फासीवादी ताकतों ने देश-समाज के राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक हर मोर्चे पर वर्चस्व कायम किया और जन-मानस की चेतना में गहरी पैठ बनाई। जिसके चलते देश में राष्ट्रवाद के नाम पर भगवाकरण और विकास के नाम पर पूँजी की लूट की खुली छूट की राह आसान हुई। कथित हिन्दू धर्म आधारित फासीवाद और कॉरपोरेट फासीवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। आज जनविरोधी दोनों संस्कृति ने गलबहियाँ कर लीं हैं।
परिचर्चा का समाहार करते हुए मदन पांडेय ने कहा कि आज पूँजीवाद की ताकत उसके पास उपलब्ध तकनीकी, मानसिक और सामाजिक उपकरणों के समुच्चय के रूप में है। प्यारेलाल जी अपने अंतिम समय तक इस बात से जूझ रहे थे कि क्यों साम्राज्यवादी लूट तंत्र बेलगाम है, जनता इतनी बेहाल है, फिर भी परिवर्तन का संघर्ष गतिरोध का शिकार है? इसी जद्दोजहद में वे इस सोच तक पहुंचे कि पूँजीवाद ने सांस्कृतिक वर्चस्व कायम करने का सशक्त हथियार विकसित किया है। इस दिशा में उनका सृजित साहित्य, सामाजिक सरोकार, आशावाद हमारे लिए प्रेरणास्पद है और एक शोषणमुक्त समाज बनाने के उनके स्वप्न को पूरा करने की साझी जिम्मेदारी हम सभी पर है।
कार्यक्रम और परिचर्चा में कार्लोस के पीपी आर्या, वरिष्ठ साहित्यकार शंभु पांडे शैलेय, जन कवि एवं किसान नेता बल्ली सिंह चीमा, पत्रकार असलम कोहरा, गिरीश पांडे, शंकर चक्रवर्ती, पंतनगर कर्मचारी संगठन के ओएन गुप्ता, एक्टू के केके बोरा, सबाहत हुसैन, पत्रकार दीप भट्ट, गिरिजा शंकर शुक्ला, माया प्रकाश मिश्रा, मालती मंडल, वीर सिंह, डॉ डीके सचान, ललित सती, सीएसटीयू के धीरज जोशी, अमर सिंह, समीर चंद्र राय, भगवती इंप्लाइज यूनियन के ठाकुर सिंह, कारोलिया लाइटिंग इंप्लाइज यूनियन के हरेंद्र, आनंद निशिकावा इंप्लाइज यूनियन के शंभू शर्मा, एडविक कर्मचारी संगठन के विकल, नेस्ले कर्मचारी संगठन के देवेंद्र रावत, सीआईई इंडिया श्रमिक संगठन के डूंगर सिंह, रॉकेट रिद्धी सिद्धी कर्मचारी संघ के मेहरबान सिंह नेगी, पीपीआईडी के हरीश मौर्य, नेस्ले श्रमिक संगठन के राजदीप बाटला आदि ने भागेदारी निभाई। स्मारिका और पुस्तक पर परिचयात्मक बात मुकुल ने रखी। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर राजेश प्रताप सिंह ने किया। इस अवसर पर गार्गी प्रकाशन और द बुक ट्री की ओर से किताबों की प्रदर्शनी लगाई गई।
प्रेषक - डॉ. प्यारेलाल के वैचारिक साथीगण: भूपेश कुमार सिंह (मो. 9411159650) राजेश प्रताप सिंह (मो. 7500941100) मुकुल (मो. 9412969989)
प्रस्तुति: एपी भारती (पत्रकार, संपादक पीपुल्स फ्रैंड, रुद्रपुर, उत्तराखंड)
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