
नई दिल्ली। करीब 42 महीने से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध से दोनों पक्षों के अब तक हजारों सैनिक और नागरिक मारे गए हैं, भारी तबाही हुई है, इससे बहुत लोग हमेशा के लिए विस्थापित और विकलांग भी हो गए। रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न महंगाई से दुनिया भर की जनता की जेब ढीली हुई लेकिन कुछ कारोबारियों ने इससे मोटा माल कमाया। लाभ कमाने वालों में इनमें लॉकहीड मार्टिन, बोइंग और रेथियॉन जैसी कुछ दिग्गज अमेरिकी रक्षा निर्माता कंपनियां और एक्सॉनमोबिल और शेवरॉन जैसी तेल कंपनियाँय रूस की रोसनेफ्ट, नोवाटेक और सिबुर और रूसी उर्वरक निर्यातक यूरालकेम और फॉसएग्रो, कम्युनिस्ट चीन की प्रमुख रिफाइनरियां, भारत की निजी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और नायरा एनर्जी शामिल हैं। जानकारी के अनुसार चालू वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान, आरआईएल ने रूसी कच्चे तेल की खरीद से लगभग 5710 लाख डॉलर कमाए या बचाए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और रूस पर नाटो के व्यापार और वित्तीय प्रतिबंधों के कारण आरआईएल आसानी से सबसे बड़ा भारतीय व्यवसाय लाभार्थी हो सकता है।
व्हाइट हाउस के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो का यह कहना पूरी तरह गलत नहीं होगा कि ब्राह्मण (अभिजात्य वर्ग का एक रूपक) भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं। पिछले साल से भारतीय रिफाइनरियों, जिनमें देश की सरकारी तेल कंपनियां भी शामिल हैं, द्वारा रूसी तेल के सस्ते आयात से भारत के लाखों घरेलू पेट्रोल और डीजल उपभोक्ताओं को कोई फायदा नहीं हुआ, जबकि तेल रिफाइनरियों ने बड़ा मुनाफा कमाया। आरआईएल ने वित्त वर्ष 2024 में अपने लगभग 35 प्रतिशत उत्पाद, जिनमें रिफाइंड तेल भी शामिल है, भारतीय बाजार में बेचे। रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि आरआईएल की जामनगर रिफाइनरी ने अपने उत्पादन का 33 प्रतिशत घरेलू बाजार में बेचा। भारत की एक अन्य प्रमुख निजी रिफाइनर, नायरा एनर्जी, जिसमें रूसी निवेशकों की एकल बहुमत हिस्सेदारी है, अपने लगभग 70-75 प्रतिशत रिफाइंड तेल उत्पाद भारतीय बाजार में बेचती और शेष निर्यात किया जाता है। नायरा का घरेलू फोकस देश भर में 6,500 से अधिक ईंधन स्टेशनों के अपने नेटवर्क द्वारा समर्थित है।
2 निजी पेट्रोलियम क्रूडरिफाइनर भारत के रूसी तेल के कुल आयात का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खपत करते हैं, देश के सरकारी स्वामित्व वाले रिफाइनर जैसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन आईओसी, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन बीपीसीएल, और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन एचपीसीएल उसी बाजार से रूसी तेल खरीदते हैं। इन्हें भी रूसी तेल की रियायती कीमत का लाभ मिला। भारत ने कुल मिलाकर अकेले चालू वर्ष के दौरान रूसी तेल खरीद से लगभग 3.8अरब डॉलर की बचत की। सरकार की ओर से तेल रिफाइनरियों को देश के उपभोक्ताओं को आंशिक रूप से भी लाभ पहुंचाने के लिए प्रेरित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। भारत ने पिछली बार ईंधन की खुदरा कीमत में कमी 14 मार्च, 2024 को लोकसभा चुनावों से ठीक पहले की थी। कीमतों में केवल 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती की गई थी। यह 22 मई, 2022 से शुरू हुई कीमतों में स्थिरता के दौर के बाद आया है। स्पष्ट रूप से आरआईएल के नेतृत्व में कुछ भारतीय तेल रिफाइनरियां रियायती रूसी तेल की खरीद से भारी मुनाफा कमा रही हैं।
रिपोर्टों से पता चलता है कि रूसी कच्चा तेल और भी सस्ता हो गया है क्योंकि भारत सरकार पर डोनाल्ड ट्रप प्रशासन द्वारा रूस के साथ तेल व्यापार में कटौती करने का लगातार दबाव है। हाल ही में रूसी यूराल कच्चे तेल की कीमत डिलीवरी के आधार पर ब्रेंट के मुकाबले 3 से 4 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर आ गई है। मुख्य रूप से दो निजी रिफाइनर, आरआईएल और नायरा द्वारा यूराल कच्चे तेल की खरीद महत्वपूर्ण और निरंतर है। चालू वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान, भारत ने 2310 लाख बैरल से अधिक कच्चे तेल का आयात किया। दोनों निजी रिफाइनरों ने रूसी उत्पादकों के साथ एक दीर्घकालिक समझौता किया है और अब यूराल के सबसे बड़े खरीदार हैं। भारत ने इस वर्ष रूस के समुद्री यूराल निर्यात का लगभग 80 प्रतिशत खरीदा, यह नीति पश्चिमी दबाव के बीच वाणिज्यिक व्यवहार्यता और राष्ट्रीय हित से प्रेरित है। आरआईएल और नायरा एनर्जी का भारत के यूराल आयात में 45 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें रिलायंस का यूराल हिस्सा उसकी कुल कच्चे तेल की खरीद में 36 प्रतिशत और नायरा का 72 प्रतिशत हो गया है। अमेरिकी ब्रेंटक्रूड की कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि अमेरिकी कच्चे तेल का भंडार घट रहा है।
इस साल की शुरुआत में आरआईएल ने रोसनेफ्ट के साथ 10 साल का समझौता किया था ताकि रूसी कच्चे तेल की खरीद को बढ़ाकर 5,00,000 बैरल प्रतिदिन किया जा सके, जिससे भारतीय कंपनी यूराल की दुनिया की सबसे बड़ी खरीदार बन गई। दोनों के बीच 10 साल का समझौता वैश्विक तेल आपूर्ति का 0.5 प्रतिशत है और मौजूदा कीमतों पर इसका मूल्य लगभग 13 अरब डॉलर प्रति वर्ष है। इस समझौते से कच्चे तेल के प्रवाह में स्थिरता सुनिश्चित होने की उम्मीद है। रोसनेफ्ट के लिए, इसका मतलब भारत में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने का एक बड़ा प्रयास है।
सस्ते कच्चे तेल की उपलब्धता ने आरआईएल के सकल रिफाइनिंग मार्जिन (जीआरएम) को बढ़ावा दिया है, जो रिफाइनिंग व्यवसाय में लाभ का एक प्रमुख संकेतक है। वित्त वर्ष 2025 में आरआईएल का जीआरएम8.5 डॉलर प्रति बैरल रहा, जो उसके घरेलू प्रतिस्पर्धियों से बेहतर प्रदर्शन था। यह स्पष्ट नहीं है कि भारत के सरकारी तेल रिफाइनर, आरआईएल की तरह आक्रामक तरीके से रूसी कच्चा तेल खरीदने में पहल क्यों नहीं कर रहे हैं। भारत के सरकारी नियंत्रण वाले रिफाइनरों की सामूहिक रिफाइनिंग क्षमता कहीं अधिक है। आरआईएल जो दुनिया की सबसे बड़ी एकल-साइट रिफाइनरी संचालित करती है, से भी आगे है। नौ रिफाइनरियों के साथ सार्वजनिक क्षेत्र की इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन एक प्रमुख खिलाड़ी है, जो देश की कुल रिफाइनिंग क्षमता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संभालती है।
सरकारी कंपनियां आगे इसलिए नहीं आ रहीं कि मोदी सरकार को अपने मित्र पूंजीपतियों को लाभ कमाने देना है। गौतम अदाणी, मुकेश अंबानी के लिए सरकार पूरे देश को दांव पर लगा चुकी है। नहीं तो क्या कारण है कि रूस बेहद कम कीमत में तेल खरीद कर भारतीय उपभोक्ता से ऊंची कीमत वसूली जा रही है जबकि देश की जनता गरीबी, बेरोजगारी, कंगाली, बदहाली, महंगाई के सबसे भयंकर दौर से गुजर रही है। मोदी सरकार ने पहले तो सरकारी संपत्ति पूंजीपतियों को लुटाई फिर उद्योगपतियों, कारोबारियों को जनता को लूटने की खुली छूट दे दी। खुद सरकार जनता से जमकर टैक्स वसूलती रही। अब नरेंद्र मोदी से गुस्साए डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर अंधाधुंध टैरिफ लगा दिए तो उसकी मार आम जनता पर पड़ रही है, नौकरियां खत्म हो रही हैं, चीजें महंगी होंगी ही।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कई वैश्विक व्यावसायिक लाभार्थी हैं, जिनमें भारत की आरआईएल भी एक प्रमुख कंपनी है। इस संघर्ष ने एशिया और पश्चिमी दुनिया भर में महत्वपूर्ण नए व्यावसायिक अवसर पैदा किए हैं। एक्सॉनमोबिल, शेवरॉन, बीपी और शेल जैसी वैश्विक तेल और गैस की बड़ी कंपनियों ने रूसी आक्रमण के बाद से भारी मुनाफा कमाया है। रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम करने के यूरोपीय प्रयास ने अमेरिका (तरलीकृत प्राकृतिक गैस या एलएनजी की आपूर्ति), कतर और नॉर्वे जैसे देशों के अन्य आपूर्तिकर्ताओं की ओर मांग को पुनर्निर्देशित किया है। लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन, नॉरथ्रॉपग्रूम्मन और जनरल डायनेमिक्स जैसी कंपनियों ने जैवलिन मिसाइलों और हिमार्सजैसे हथियारों और युद्ध सामग्री की उच्च मांग से लाभ कमाया है। दुनिया के कुछ शीर्ष कृषि जिंस व्यापारी, जैसे एडीएम, बंज, कारगिल और लुईड्रेफस (एबीसीडी चौकड़ी) वैश्विक अनाज प्रवाह को पुनर्निर्देशित और प्रबंधित करके भारी लाभ कमा रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने रूसी व्यवसायों को भी लाभ पहुंचाया है, आयात प्रतिस्थापन से लेकर अत्यधिक रियायती विदेशी संपत्तियों के अधिग्रहण तक क्योंकि पश्चिमी संचालक रूसी बाजार से बाहर निकल गए थे। रूसी अरबपतियों ने ऊर्जा, खुदरा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में पश्चिमी कंपनियों द्वारा छोड़ी गई ऐसी संपत्तियों को हासिल करके लाभ कमाया। फार्मास्यूटिकल्स, खुदरा और विनिर्माण सहित रूसी उद्योग, विदेशी प्रतिस्पर्धियों के बाहर निकलने से पैदा हुए बाजार के खालीपन को भरकर विकसित हुए हैं। साइबर सुरक्षा फर्मकैस्परस्की लैब ने मौजूदा विदेशी कंपनियों से सॉफ्टवेयर अवसंरचना विकास का कार्यभार संभाला। रूसी खुदरा विक्रेता ग्लोरियाजीन्स ने एचएंडएम और जारा जैसी कंपनियों द्वारा खाली किए गए प्रमुख खुदरा स्थानों का अधिग्रहण करके अपना विस्तार किया। व्यापार प्रवाह के पुनर्गठन ने कई देशों के लिए अवसर भी पैदा किए हैं। पश्चिम एशियाई ऊर्जा उत्पादकों के निर्यात राजस्व और आर्थिक लाभ में वृद्धि देखी जा रही है। तुर्की यूरोपीय आयातों के लिए एक संभावित ऊर्जा केंद्र और रूसी ऊर्जा के पुनर्निर्यात का केंद्र बन गया है। रूसी तेल की अपनी खरीद बढ़ाने के अलावा चीन ने यूरोप को तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की अपनी खेप भी मुनाफे पर बेची है। ये व्यापारिक प्रतिष्ठान अपने व्यावसायिक लाभ के लिए रूस-यूक्रेन युद्ध को यथासंभव लंबे समय तक जारी रखना चाहेंगे।
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