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हिमालयी पर्यावरण संस्थान में नॉन टिंबर फारेस्ट प्रोडक्ट्स आधारित आजीविका के अवसर पर कार्यशाला आयोजित Workshop on non-timber forest products based livelihood organized at GB Pant National Himalayan Environment Institute



अल्मोड़ा, 20 फरवरी। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा के ग्रामीण तकनीकी परिसर में द हंस फॉउन्डेशन, देहरादून द्वारा आयोजित वनाग्नि शमन एवं रोकथाम परियोजना के अन्तर्गत उत्तराखंड में नॉन टिंबर फारेस्ट प्रोडक्ट्स आधारित आजीविका के अवसर (मुख्य रूप से चीड़ एवं रिंगाल) पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला आयोजित की गई। हंस फॉउंडेशन के अल्मोड़ा, बागेश्वर, टिहरी तथा पौड़ी से आये कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया।

कार्यशाला शुरु करते हुए संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं ग्रामीण तकनीकी परिसर के समन्वयक डा. अशोक साहनी ने प्रशिक्षण की रूपरेखा देते हुए संस्थान द्वारा इस क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं जैव-विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन विभाग के केंद्र प्रमुख डा.आइ.डी. भटट ने कहा कि उत्तराखंड के निवासियों के पास प्राकृतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है अतः हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आजीविका संवर्धन में करना चाहिये। उन्होंने वनाग्नि से हर वर्ष होने वाले जैव विविधता के नुकसान पर चिंता व्यक्त की और कहा कि चीड़ वृक्ष से फैलने वाली आग को जंगलों से चीड़ की पतियों का उपयोग कई प्रकार के उत्पाद बना कर कम किया जा सकता है। इस तरह से वनाग्नि में भी कमी आयेगी साथ ही ग्रामीण लोगों की आजीविका भी बढ़ेगी। उन्होंने चीड़ की पत्तियों द्वारा अनेक उत्पाद जैसे बायो ब्रिकेट, आकर्षक कलाकृतियाँ तथा सुखे पिरूल से हस्त निर्मित कागज तैयार करना इत्यादि के बारे मे भी जानकारी दी।

तकनीकी सत्र मे संस्थान की वैज्ञानिक डा. हर्षित पंत जुगरान के द्वारा पिरूल से जैव ईधन (बायोब्रिकेट) तैयार करने की विस्तार से जानकारी दी। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं ग्रामीण तकनीकी परिसर के समन्वयक डा. एस.सी. आर्य ने संस्थान द्वारा चलायी जा रही विभिन्न परियोजनाओं के अन्तर्गत स्थानीय ग्रामीणों द्वारा पर्यावरण अनुकूल उत्पाद तैयार करने के प्रयासों के बारे मे जानकारी दी। संस्थान के वरिष्ठ तकनीशियन डा. सुबोध ऐरी द्वारा पिरूल के कारण जंगल मे आग लगने से जैव विविधता को हो रहे नुकसान तथा अतिक्रमंकारी पादप प्रजातियों के प्रभावों के बारे मे जानकारी दी। प्रशिक्षण के द्वितीय तकनीकी सत्र मे एन.आर.एल.एम की प्रशिक्षिका किरन चौधरी एवं ममता अधिकारी ने पिरूल से विभिन्न दैनिक उपयोग कि वस्तुएं जैसे - टोकरी, गुलदस्ता, पायदान, इत्यादि बनाने का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के प्रथम दिन के अन्तिम सत्र में प्रतिभागियों को संस्थान के सूर्यकुंज का भ्रमण कराया गया।


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