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कौन आजाद हुआ ? किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी ? मेरे सीने मे अभी दर्द है महकूमी का, मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही Who got free? From whose forehead the ink of slavery was removed? There is still pain in my chest, there is sadness on the face of Mother India



कोई सरदार कब था इससे पहले तेरी महफिल में /

बहुत अहले-सुखन उट्ठे बहुत अहले-कलाम आये। -अली सरदार जाफरी

भारत की जनता इन दिनों भयंकर बेरोजगारी, महंगाई, जबरदस्त टैक्स वसूली, जनकल्याणकारी योजनाओं में कटौती इत्यादि से त्राहि-त्राहि कर रही है। लेकिन सरकार और उसके सहयोगी समर्थक आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। हर घर तिरंगा अभियान चल रहा है। लोग जीने के लिए बेहद जरूरी न्यूनतम बुनियादी चीजों से भी महरूम हैं। ऐसे में जनता से वसूले गये टैक्स से सरकारी मौज मस्ती जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। अली सरदार जाफरी ने बहुत पहले ही आजादी को लेकर तीखा तंज कसा था। 29 नवम्बर 1913 को अली सरदार जाफरी का जन्म गोंडा जिले के बलरामपुर गाँव में हुआ था और वहीं पर हाईस्कूल तक उनकी शिक्षा-दीक्षा भी हुई थी। उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहाँ सरदार को उस समय के मशहूर और उभरते हुए शायरों की संगत मिली जिनमें अख्तर हुसैन रायपुरी, सिब्ते-हसन, जज्बी, मजाज, जाँनिसार अख्तर और ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे अदीब भी थे

स्वतंत्रता ओदोलन का दौर था, अतः नौजवान अली सरदार भी आंदोलन में शरीक हो गये। वॉयसराय के इक्जिकिटिव कौंसिल के सदस्यों के विरुद्ध हड़ताल करने के लिए सरदार को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया। अपनी पढाई आगे जारी रखते हुए उन्होंने एँग्लो-अरेबिक कालेज, दिल्ली से बी.ए. पास किया और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की। साथ ही जनआंदोलनों में भागीदारी भी करते रहे। परिणामस्वरूप उन्हें जेल जाना पडा। जेल में उनकी मुलाकात प्रगतिशील लेखक संघ के सज्जाद जहीर से हुई और लेनिन व मार्क्स के साहित्य के अध्ययन का अवसर मिला। यहां उन्हें अपनी सोच को दिशा मिली। वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुडे जहाँ उन्हें प्रेमचन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, फैज अहमद फैज , मुल्कराज आनंद जैसे भारतीय सहित्यकारों तथा पाब्लो नेरूदा व लुई अरांगा जैसे विदेशी चिंतकों के विचारों को जानने - समझने का अवसर मिला। वे इन सबसे प्रभावित हो कर जनता की आवाज बने

उन्होंने खूब लिखा। उन्होंने ग्यारह काव्य-संग्रह, चार गद्य संग्रह, दो कहानी संग्रह और एक नाटक के अलावा कई पद्य एवं गद्य का योगदान साहित्यिक पत्रिकाओं को दिया। उनकी ख्याति एक ऐसे शायर के रूप में उभरी जिसने उर्दू शायरी में छंद-मुक्त कविता की परंपरा शुरू की। तभी तो उनकी कई रचनाएँय जैसे परवाज, नई दुनिया को सलाम, खून की लकीर, अमन का सितारा, एशिया जाग उठा, पत्थर की दीवार और मेरा सफर ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने प्रतीकों, बिम्बों और मिथकों का भी सुंदर प्रयोग किया है। यद्यपि सरदार ने अपनी शायरी में फारसी का अधिक प्रयोग किया है, फिर भी उनकी रचनाएँ आम आदमी तक पहुँची और बेहद मकबूल हुई। उनके कलम का लोहा देश में ही नहीं, अपितु अंतरराष्ट्रीय साहित्य जगत् में भी माना जाता है। सरदार को भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार,के अलावा उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, कुमारन आशान पुरस्कार, राष्ट्रीय इकबाल सम्मान, पद्मश्री, सोवियत संघ का सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार भी मिला। सन 2000 की एक अगस्त को बंबई में उनका निधन हुआ।

कौन आजाद हुआ ?/

किसके माथे से गुलामी की सियाही छूटी ?/

मेरे सीने मे अभी दर्द है महकूमी का/

मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही/

कौन आजाद हुआ ?/

खंजर आजाद है सीने मे उतरने के लिए/

वर्दी आजाद है वेगुनाहो पर जुल्मो सितम के लिए/

मौत आजाद है लाशो पर गुजरने के लिए/

कौन आजाद हुआ ?/

चोर बाजारों मे बदशक्ल चुड़ैलों की तरह/

कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है/

हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए/

कौन आजाद हुआ ?/

कारखानों मे लगा रहता है/

साँस लेती हुयी लाशो का हुजूम/

बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी/

अपने खूंखार दहन खोले हुए/

और सोने के चमकते सिक्के/

डंक उठाए हुए फन फैलाए/

रूह और दिल पे चला करते हैं/

मुल्क और कौम को दिन रात डसा करते हैं/

कौन आजाद हुआ ?/

रोटियाँ चकलो की कहवाये है/

जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने/

नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है/

बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे/

मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह/

अजनबी देश के बाजारों मे बिक जाते है/

और बदबख्त किसानो की बिलखती हुयी रूह/

अपने अफ्लास मे मुंह ढांप के सो जाती है/

कौन आजाद हुआ ?/

हम कहां जाएं, कहें किससे कि नादार हैं हम/

किसको समझाएं गुलामी के गुनहगार हैं हम/

तौक खुद हमने पहना रक्खा है अरमानों को/

अपने सीने में जकड़ रक्खा है तूफानों को/

अभी जिंदान-ए-गुलामी से निकल सकते हैं/

अपनी तकदीर को हम आप बदल सकते हैं।/

कौन आजाद हुआ ?


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