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मजदूर विरोधी हैं मोदी सरकार के श्रम कानून, कार्यस्थलों, अदालतों में मजदूरों को आवाज बुलंद करने, संगठित होने का अधिकार - खड़गे Modi government's labor laws are anti-labour, workers have the right to raise their voice in workplaces, courts, organize - Kharge



बंगलुरु। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस पर एक लेख में नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कार्यस्थलों, अदालतों और सरकार में श्रमिकों की आवाज को बुलंद करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस आज की दुनिया के निर्माण में मजदूरों के योगदान और बलिदान को चिह्न्ति करता है। आज, हम उनके लंबे संघर्ष को याद करते हैं - उचित और समान वेतन, सुरक्षित काम करने की स्थिति, और संगठित होने का अधिकार और उनके कार्यस्थलों, अदालतों और सरकार में उनकी आवाज का सुना जाना। खड़गे ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से सरकारों ने मजदूरों को सुरक्षित और सशक्त किया है, लेकिन दुर्भाग्य से, मोदी सरकार ने मजदूरों के अधिकार को पीछे धकेल दिया है। उनके अधिकारों को कमजोर किया जा रहा है, चाहे वे कृषि में काम करते हों, सार्वजनिक या निजी संगठनों हो या असंगठित शहरी क्षेत्र, उनकी आवाज कहीं नहीं सुनी जा रही है।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि हालांकि यह सच है कि आजादी के बाद से 40 से अधिक कानून पेश किए गए हैं, उन्हें आज की चुनौतियों से निपटने के लिए अपडेट करने की जरूरत है। मोदी सरकार ने इसका इस्तेमाल मजदूरों के लिए सुरक्षा को कमजोर करने और राज्य सरकारों की संवैधानिक शक्तियों को छीनने के लिए किया है। सरकार ने जो लेबर कोड पेश किया है उसमें चार बड़ी खामियां हैं जो उन्हें श्रमिक विरोधी बनाती हैं। सबसे पहला, कोड अधिकांश मजदूरों या प्रतिष्ठानों पर लागू नहीं होते। उदाहरण के लिए, 300 से कम लोगों को रोजगार देने वाले प्रतिष्ठान बिना अनुमति के इकाई बंद कर सकते हैं। 50 से कम लोगों को रोजगार देने वाले ठेकेदारों को कार्यस्थल सुरक्षा कानूनों से छूट दी गई है। भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, छोटे प्रतिष्ठानों में बीमा और मातृत्व लाभ उपलब्ध नहीं हैं।

खड़गे ने अगर कोड किसी प्रतिष्ठान पर लागू होते हैं तो कार्यस्थल सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और छंटनी या बंद होने की स्थिति में आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सरकार के पास ज्यादा शक्तियां हैं। तीसरा, कोड यूनियन के गठन को और अधिक कठिन बनाता है। दो सप्ताह के नोटिस के बिना किसी भी हड़ताल को अवैध घोषित किया जा सकता है। हड़ताल का समर्थन करने वालों को दंडित कर अधिकारों के लिए लड़ने की क्षमता को यह कोड काफी कमजोर करता है।

खड़गे ने कहा कि चौथा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोड मजदूरों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों की अनदेखी करता है। बिना किसी लिखित अनुबंध के करोड़ों मजदूरों की मदद कैसे की जा सकती है? श्रमिकों की स्थिति में सुधार कैसे किया जा सकता है? एक मजदूर तब संघर्ष करता है जब वे अपनी नौकरी खो देता है या चोटिल हो जाते है - इस संघर्ष को कैसे कम किया जा सकता है? इस पर कोड मौन है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, साफ है कि मोदी सरकार श्रम कानूनों को एक बड़ी असुविधा के रूप में देखती है। वह यह नहीं समझती है कि श्रम कानून, जब अच्छी तरह से डिजाइन और लागू होते हैं तो ये श्रमिकों और व्यवसायों दोनों के लिए अच्छा होता है।

उन्होंने आगे कहा, यही कारण है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भाजपा सरकारें कोविड का बहाना बना कर तीन साल के लिए प्रमुख श्रम कानूनों को हटा दिया। इसके बावजूद ये सरकारें विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में असफल रही हैं।

खड़गे ने कहा कि पीएम मोदी और भाजपा को लगता है कि योजनाओं को री ब्रांड कर कानूनों में उलट फेर करने से श्रमिकों को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, मैं एक मजदूर का बेटा हूं, और एक श्रमिक संघ का नेतृत्व किया है। मुझे पता है कि आज मजदूरों के सामने वास्तविक समस्याओं से निपटने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। महत्वपूर्ण पहला कदम निर्णय लेने में मजदूरों की अनदेखी करना बंद करना है, और इसके बजाय उनकी आवाज को पुनर्जीवित करना है। 

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