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शराब कितनी पीनी सुरक्षित, असुरक्षित, व्यापक शोध निष्कर्षों के बाद कनाडाई नागरिकों के लिए सरकारी गाइडलाइन, आप भी सोचिए पीना क्यों जरूरी ? How much alcohol to drink is safe, unsafe, government guideline for Canadian citizens after extensive research findings, you also think why drinking is necessary?



जानकारी रोचक है, तसल्ली से पढ़िए।
कभी उलझ पड़े खुदा से/ कभी साकी से हंगामा/न नमाज अदा हो सकी/ न शराब पी सके!
टोरंटो। शराब पीने के पक्षधर शराब सेवन के तमाम फायदे गिनाते हैं। शराब विरोधी लोग शराब के दुष्परिणाम बताते हैं। शराब कंपनियां पीने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए यूं तो विज्ञापन करते ही हैं शोधकर्ताओं और मीडिया का इस्तेमाल भी अपने पक्ष में कर ले जाते हैं। शराब दुनिया भर में आदिकाल से पी जा रही है। आदि काल से ही समाज मदिरापान को खराब भी बताता रहा है। शराब अरबी नाम है। हिंदी में मदिरा कहा जाता है। सुरा भारत में शराब का प्राचीन नाम है। कनाडा सरकार की नयी शराब गाइडलाइन के मुताबिक हर सप्ताह, शराब की सिर्फ दो ड्रिंक ही कम जोखिम वाली होती है. पहले की गाइडलाइन के लिहाज से ये बहुत भारी कटौती है, जिसमें कहा गया था कि लैंगिक आधार पर रोजाना करीब दो ड्रिंक ली जा सकती है. वर्षों से अधिकांश पश्चिमी देशों में स्वास्थ्य अधिकारी ये बताते आए हैं कि पुरुषों के लिए दिन में दो ड्रिंक और औरत के लिए एक ड्रिंक को मॉडरेट यानी हल्का या सामान्य और सुरक्षित कहा जा सकता है. मालूम हो कि जर्मनी और अमेरिका में 7 से 14 ड्रिंक प्रति सप्ताह (लैंगिक आधार पर) को कम खतरे वाला माना जाता है. जबकि ब्रिटेन में छह ड्रिंक प्रति सप्ताह को लो-रिस्क में रखा गया है. लेकिन हाल के वर्षों में प्रकाशित शोध उपरोक्त पैमानों पर सवाल उठाता है. कई अध्ययन ये बताते रहे हैं कि रोजाना भी एक या दो पैग शराब का स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ सकता है. पश्चिमी देशों में कनाडा पहला ऐसा देश है जिसने इस नयी रिसर्च के नतीजों को मानते हुए अपने यहां गाइडलाइन बदली है.
मार्च 2022 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन ने कुछ पुरजोर साक्ष्य पेश किए हैं कि जिसे शराब का मॉडरेट या हल्का सेवन माना जाता है वो असल में मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है. यूके बायोबैंक से 36000 से ज्यादा अधेड़ और बूढ़े लोगों के मस्तिष्क के स्कैन की जांच करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि हर रोज औसतन 175 मिलीलीटर वाइन या आधा लीटर बीयर पीने वाले 50 वर्षीय व्यक्तियों के मस्तिष्क, उनकी आधा मात्रा में पीने वालों या बिल्कुल भी न पीने वालों की तुलना में, डेढ़ साल बूढ़े दिखते थे.
एक बोतल शराब के लिए / कतार में जिंदगी लेकर खड़ा हो गया/ मौत का डर तो वहम था/ आज नशा जिंदगी से बड़ा हो गया।
शराब के प्रभावों पर शोध करने वाले शोधकर्ताओं के मुताबिक शराब पीने के साथ साथ बुढ़ापे में भी वृद्धि होने लगी थी. ये अध्ययन, मस्तिष्क पर मॉडरेट ड्रिंकिंग के प्रभावों की छानबीन करने वाले अब तक के सबसे बड़े अध्ययनों में से एक है. शोधकर्ताओं के मुताबिक मॉडरेट या औसत ड्रिंकिंग का अर्थ है एक सप्ताह में अधिकतम 14 पेग. और हल्के सेवन का मतलब है प्रति सप्ताह एक से ज्यादा पैग लेकिन सात से कम. लेकिन बहुत से सवालों के जवाब बाकी हैं. यूं पहली नजर में, मस्तिष्क के अध्ययन से जुड़े नतीजे भले ही सीधे और स्पष्ट दिखते हों, लेकिन थोड़ा और गहराई में देखें तो बहुत सी चीजों के बारे में हम अभी कुछ नहीं जानते. लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में अल्कोहल एंड ड्रग एब्यूज सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की निदेशक पैट्रिशिया मोलिना कहती हैं कि ये अभी अस्पष्ट है कि दो साल की अवधि में सिकुड़ चुके और बुढ़ापे के चिन्ह दिखा चुके मस्तिष्क का, संज्ञानात्मक व्यवहार पर क्या असर पड़ता है.
मोलिना के अनुसार कई साक्ष्य, मस्तिष्क के आकार में कमी और संज्ञानात्मक नुकसान के बीच एक संबंध दिखाते हैं. लेकिन वो इस बात से भी अंजान हैं कि खास प्रतिशतों में मस्तिष्क के घटते आकार का किसी बीमारी के नतीजों से सीधा संबंध दिखाने वाले निर्णायक अध्ययन हुए हैं या नहीं. ऐसी बीमारी जिनके बारे में मरीज या उनके डॉक्टर पहले से वाकिफ हैं. मोलिना कहती हैं कि उक्त अध्ययन का डिजाइन ऐसा है कि कुछ सवालों के जवाब मिलना मुश्किल हो जाता है. जैसे कि उसके नतीजे शारीरिक फिटनेस की कमी या हंटिंग्टन बीमारी जैसी दूसरी गतिविधियों और ब्रेन मैटर को घटाने वाली बीमारियों से होने वाली सिकुड़न के साथ तुलना में क्या कहते हैं. मोलिना के मुताबिक, मेटा-विश्लेषण ही जवाब पाने का सबसे करीबी तरीका होगा. दूसरे शब्दों में, किसी को इस बारे में उपलब्ध तमाम लिटरेचर पर नजर डालनी होगी और नतीजों का तुलनात्मक विश्लेषण किया जा सके.
मोलिना का कहना है कि ऐसी तुलनाएं करना इसलिए भी कठिन हैं क्योंकि अलग अलग गतिविधियां या बीमारियां अलग अलग स्थानों पर अलग अलग सिकुड़न पैदा करती हैं. मिसाल के लिए, दिन भर मटरगश्ती करने और सिर्फ प्रोसेस्ड फूड खाने से, हंटिंग्टन बीमारी की अपेक्षा, दिमाग में अलग इलाके पर सिकुड़न आ सकती है. पहले मुर्गी या पहले अंडा वाला असमंजस भी है. क्या ये हो सकता है कि नियमित रूप से शराब पीने को प्रवृत्त लोगों का मस्तिष्क आमतौर पर न पीने वालों की तुलना में छोटा ही होता हो? मोलिना कहती हैं कि शोधकर्ता इस सवाल का जवाब, किशोरावस्था में मस्तिष्क के संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन के जरिए देने की कोशिश कर रहे हैं. उस अध्ययन के तहत, शराब और ड्रग के सेवन से जुड़ा डाटा जमा करने के अलावा, समय के साथ मस्तिष्क के आकार में बदलावों को ट्रैक किया जाता है.


बताया जाता है कि शराबखोरी शरीर और दिमाग, दोनों के लिए हानिकारक है, इस बात के प्रमाण तो पक्के और निर्णायक हैं. लेकिन जब बात आती है मॉडरेट सेवन की तो मामला थोड़ा पेचीदा हो जाता है. पिछले कुछ दशकों में प्रकाशित बहुत से अध्ययन ये दावा करते दिखते है कि मॉडरेट मात्रा में शराब पीना आपने लिए वास्तव में अच्छा हो सकता है. ब्रेन स्टडी से ठीक एक दिन पहले का अध्ययन भी इनमें शामिल है. यूके बायोबैंक के जरिए करीब 312000 मौजूदा पियक्कड़ों से मिले डाटा का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि खाने के साथ रोजाना करीब 150 मिलीलीटर वाइन के बराबर अल्कोहल सेवन करने वाली औरतों में और 300 एमएल के बराबर का अल्कोहल सेवन करने वाले पुरुषों में, टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा कम रहता है. येल यूनिवर्सिटी में मेडिसिन की प्रोफेसर और अल्कोहल की लत से जुड़े मामलों की विशेषज्ञ जेनेट ट्रेटॉल्ट ने बताया कि इस किस्म के शोध में, सुर्खियों की तह में जाकर चीजों को समझना जरूरी है. जेनेट कहती हैं कि आखिरकार अध्ययन ने सिर्फ यही पाया है कि अगर आप खाने के साथ अल्कोहल लेते हैं तो आपको टाइप 2 डायबिटीज होने की आशंका कम है और अगर बिना खाए लेते हैं तो हो सकती है. अल्कोहल आपके लिए अच्छा है, ऐसा कहीं नहीं कहा गया है. जेनेट ट्रेटॉल्ट ने कहा कि अगर आप ये सारी पेचीदगियां या दुश्वारियां नहीं समझते या उन पर गौर नहीं करते हैं तो आपके निष्कर्ष या विवेचनाएं कुछ महत्वपूर्ण और मानीखेज मुद्दों की ओर ले जा सकती हैं.
ऐसे अध्ययनों के आलोचक ये भी कहते हैं कि उनमें जरूरी सामाजिक-आर्थिक कारकों को भी शामिल नहीं किया जाता है, रेड वाइनके लाभों को बढ़ाचढ़ाकर दिखाने का चलन भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऊंचे रुतबे यानी ऊंची सामाजिक-आर्थिक साख वाले लोगों में, जो अक्सर पहले से स्वस्थ ही होते हैं, हर रोज एक गिलास रेड वाइन लेने की संभावना ज्यादा देखी जा सकती है बजाय कि उनमें जो ऐसे रुतबे वाले नहीं होते हैं. 2018 में न्यू यार्क टाइम्स की जांच में पाया गया कि स्वास्थ्य पर मॉडरेट अल्कोहल सेवन के असर का पता लगाने वाले 10 साल की अवधि वाले बड़े पैमाने के अध्ययनों में शामिल शोधकर्ता, शराब उद्योग की ओर झुके हुए थे. नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के अध्ययन की फंडिंग में लगी 10 करोड़ डॉलर की राशि, मुख्यतः शराब उद्योग के बड़े खिलाड़ियों की ओर से आई थी. उनमें आनह्युजर-बुश इनबेव भी एक है. इस अध्ययन के लीड ऑथर हार्वर्ज यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर हैं, ईमेल और कॉंफ्रेंस कॉल्स के जरिए उन्होंने अल्कोहल कंपनियों को भरोसा दिलाया था कि नतीजे उनके ही पक्ष में आएंगे.
नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के जांचकर्ताओं को जब इस घोटाले की खबर लगी तो अध्ययन रुकवा दिया गया. हालांकि प्रकाशित कुछ हुआ नहीं लेकिन ये हालात इस बात की याददिहानी हैं कि लुभावने नतीजों को लेकर सावधान रहना चाहिए. 2018 के एक बड़े अध्ययन ने मॉडरेट सेवन को लेकर जारी बहस पर विराम लगाने की कोशिश की. उसका कहना था कि किसी भी पैमाने पर शराब पीने से सेहत अच्छी नहीं होती. 26 साल की अवधि में 195 देशों के डाटा का इस्तेमाल करते हुए अध्ययन में अल्कोहल के वैश्विक बोझ का अब तक का सबसे व्यापक आकलन पेश किया गया. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने स्टडी के डिजाइन में कमियों की ओर इशारा किया है. जैसे कि, संख्या में अपने नतीजे रखने के बजाय, शोधकर्ताओं ने नजदीकी शब्दावली में नतीजे बताए थे. जब उन्होंने ठेठ आंकड़ों में या संख्या में बात रखी तो नुकसान का स्तर बदल गया.
जानकार बताते हैं कि रोजाना एक पेग लेने वालों में, अल्कोहल से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या होने का जोखिम रोज न पीने वालों की तुलना में, 0.5ः ज्यादा था. आंकड़ों में देखें तो अध्ययन ने पाया कि 15 से 95 साल की उम्र वाले प्रति एक लाख लोगों में से 914 लोगों ने अगर शराब न पी हो तो उस स्थिति में एक साल में कोई समस्या आती है. और अगर वे पीते तो प्रति लाख में उनकी संख्या सिर्फ चार और बढ़कर 918 हो जाती.
यूं हम शराब की खपत के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, उसे देखते हुए, ट्रेटॉल्ट के मुताबिक वो अपने मरीजों को शराब पूरी तरह छोड़ने के लिए नहीं कहेंगी. उनका कहना है कि वो पहले से संज्ञानात्मक समस्या वाले मरीजों के मस्तिष्क का अध्ययन करना चाहेंगी या उन्हें और परामर्श देंगी. वो कहती हैं, ष्लेकिन मैं जरूरी नहीं कि इस डाटा को मरीजों के व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश के लिए इस्तेमाल करूं जिन्हें वास्तव में कोई नुकसान नहीं हुआ है और जो जानते हैं कि उनके संभावित खतरे क्या हैं. मैं अपने तमाम मरीजों को ये नहीं कहूंगी कि वे पीना छोड़ दें. अगर आप स्वस्थ होने की कोशिश कर रहे हैं, तो कभी कभार रेड वाइन का एक गिलास शायद काम न आए. लेकिन वो शायद ज्यादा नुकसान भी न करे. लेकिन कनाडा की नयी गाइडलाइन, वैज्ञानिक बिरादरी के शोधकर्ताओं का ये रुझान जरूर दिखाती है कि शराब पीने के मामले में मॉडरेट शब्द को वे किस तरह परिभाषित करने लगे हैं.
अगर गम मोहब्बत का हावी न होता/ खुदा की कसम मैं शराबी न होता।
पियक्कड़ों को दुनिया भर के लगभग सभी समाजों में खराब माना जाता है लेकिन गरीब, अमीर सदियों से पीते आ रहे हैं और यहां तक की तथाकथित देवों, दानवों तक के सुरापान की बातें ग्रंथों में लिखी हैं। आदर्श स्थितियों में जबकि आपके पास पर्याप्त धन हो, शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हों, पौष्टिक भोजन की प्रचुरता हो, आराम का पर्याप्त समय हो तो थोड़ी पी जा सकती है। लेकिन पीने वाले खुशी में, गम में, थकान में, यूं ही किसी भी बहाने पीते हैं। पी कर के तमाम तरह के अपराध होते हैं। परिवार के परिवार तबाह हो जाते हैं। शराब किसी भी समस्या का समाधान नहीं है न यह स्वास्थ्य और मन के लिए लाभदायक है। इसके आर्थिक, शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक सभी तरह के नुकसान हैं, अतः पीने के बावत सहजता से सोचिए।
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