संविधान और कानूनों में राष्ट्र विरोधी शब्द परिभाषित नहीं है, आलोचकों को होना पड़ता है अनावश्यक प्रताड़ित The word anti-national is not defined in the constitution and laws, critics have to be unnecessarily harassed
नई दिल्ली। आमतौर पर मोदी सरकार समर्थक, आरएसएस, भाजपा की विचारधारा प्रभावित लोग सरकार और भाजपा सरकार की आलोचना करने वाले, लोकतंत्र, मानवाधिकारों की बात करने वालों को देशविरोधी बता देते हैं। पुलिस भी अनेक बार बिना सोचे-समझे लोगों के खिलाफ राष्ट्र विरोधी होने के मामले में मुकदमा दर्ज कर लेती है, तमाम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन होता है। आखिर राष्ट्र विरोध का मतलब क्या है ? यह कानून में परिभाषित नहीं है। जी हां ! संविधान में या कानूनों के अंतर्गत राष्ट्र विरोधी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन आपातकाल के दौरान सबसे पहले 1976 में तत्कालीन कांग्रेस शासन द्वारा एक संवैधानिक संशोधन के माध्यम से इसे संविधान में शामिल किया गया और फिर एक साल बाद हटा भी दिया गया। पिछले साल 2021 में केंद्र सरकार ने दिसंबर लोकसभा में यह जानकारी दी थी।
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने एआईएमआईएम के नेता और हैदराबाद से लोकसभा सदस्य असदुद्दीन ओवैसी की ओर से पूछे गए प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। राय ने जवाब देते हुए कहा, कानूनों के अंतर्गत राष्ट्र-विरोधी शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान (42वां संशोधन) अधिनियम, 1976 के तहत इसका उल्लेख किया गया था और आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 31 डी के तहत राष्ट्र विरोधी गतिविधि को परिभाषित किया गया। इसके बाद संविधान (43वां संशोधन) अधिनियम, 1977 के तहत अनुच्छेद 31डी को हटा दिया गया।
ओवैसी ने पूछा था कि क्या सरकार ने देश में लागू होने वाले किसी भी कानून या नियमों या किसी अन्य कानूनी अधिनियम के तहत राष्ट्र-विरोधी के अर्थ को परिभाषित किया है और क्या उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों से संबंधित अपराधों से निपटने के लिए कोई दिशानिर्देश तय किए हैं?
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