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मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन के बीच राष्ट्रपति मुर्मू ने दी प्रकृति से सम्मानजनक व्यवहार की नसीहत In the midst of gross violation of human rights, President Murmu advised to treat nature with respect



नई दिल्ली। पूर्ण लोकतंत्र से भारत आंशिक लोकतंत्र में बदल गया है, प्रेस स्वतंत्रता न्यूनतम हो गई है, नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को लगातार कुचला जा रहा है, मानवाध्किारों का खूब उल्लंघन हो रहा है ऐसे में देश में मानवाधिकारों के उल्लंघन के पर व्यापक चर्चा के बजाय मानवाधिकार से जुड़े एक अन्य विषय प्रकृति से छेड़छाड़ और उसके दुष्परिणामों पर एनएचआरसी ने ज्यादा ध्यान दिया। प्रकृति का अत्यधिक दोहन-शोषण में सरकारें ही ज्यादा संलग्न हैं या ऐसा करने वालों की सहयोग हैं। शनिवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि जलवायु परिवर्तन दरवाजे पर दस्तक दे रहा है और गरीब देशों के लोग पर्यावरण के क्षरण के लिए भारी कीमत चुकाने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि समाज को अब न्याय के पर्यावरणीय आयाम पर भी विचार करना चाहिए। मानवाधिकार दिवस के मौके पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुर्मू ने यह भी अपील की कि मनुष्यों को प्रकृति तथा जैव विविधता से प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ व्यवहार करना भी सीखना चाहिए।

उन्होंने कहा, मैं पूछती हूं कि अगर हमारे आसपास के जानवर और पेड़ बोल सकते तो वे हमें क्या बताते। हमारी नदियां मानव इतिहास के बारे में क्या कहतीं और हमारे मवेशी मानवाधिकार के विषय पर क्या कहते। हमने लंबे वक्त तक उनके अधिकारों को कुचला है और अब परिणाम हमारे सामने है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि जिस तरह से मानवाधिकारों की अवधारणा समाज के प्रत्येक मनुष्य को हमसे अलग न मानने पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है, उसी तरह हमें सभी प्राणियों और उनके आवास स्थान से सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए। मुर्मू ने कहा कि हमें प्रकृति से सम्मान के साथ व्यवहार करना सीखना, बल्कि फिर से सीखना होगा। यह न केवल हमारा नैतिक दायित्व है, बल्कि हमारे अपने अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है।

मालूम हो कि 1950 में 11 दिसंबर को मानव अधिकार दिवस घोषित किया गया था। इसका मकसद दुनिया भर के लोगों का ध्यान मानवाधिकारों की ओर खींचना, ताकि हर देश और समुदाय में सभी को एक नजर से देखा जाए। भारत में मानवाधिकार उल्लंघन तो पहले भी होते थे लेकिन 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के बाद मानवाधिकारों पर हमले खूब बढ़े हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानवाधिकारों का मखौल उड़ाते रहे हैं। मानवीय गरिमा के खिलाफ इन्हीं के समर्थक सहयोगी सबसे आगे हैं। आलोचकों और संवैधानिक, मानव अधिकारों की बात करने वाले सर्वाधिक इसी दौर में सताए गये हैं, जेलों में डाले गये हैं। विकास के नाम पर प्रकृति के से खूब छेड़छाड़ मोदी शासन में ज्यादा बढ़ गया है। ऐसे में शीर्ष पद पर बैठे लोग भी असल मुद्दों से या तो ध्यान भटकाने वाली बातें करते हैं या घुमा फिराकर बात करते हैं ताकि सरकार के कुकृत्यों पर पर्दा पड़ा रहे।

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