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हिमालयी पर्यावरण संस्थान ने कार्यशाला में वन संसाधनों, जैव विविधता संरक्षण पर दी जानकारी, विकास और उपयोग का महत्व बताया Himalayan Environmental Institute explained the importance of information, development and use of forest resources, biodiversity conservation in the workshop



अल्मोड़ा (उत्तराखंड) 31 दिसम्बर। गोविंद संस्थान बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल, अल्मोड़ा द्वारा संस्थान के निदेशक की अध्यक्षता में हिमालयी वन संसाधनों एवं जैव विविधता संरक्षण के लिए हितधारकों से परामर्श विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन संस्थान की अवक्रमित भूमि के पुनर्स्थापन क्षेत्र स्थल ग्राम दिगतोली, जिला पिथौरागढ़ में किया गया। कार्यक्रम का संचालन संस्थान के वैज्ञानिक डा० आशीष पाण्डेय द्वारा किया गया। तद्पश्चात संस्थान के वैज्ञानिक डा० के०एस० कनवाल द्ववारा कार्यशाला में उपस्थित संस्थान से आयेनिदेशक महोदय, वैज्ञानिक तथा सभी प्रतिभागियों का स्वागत एवं अभिनन्दन किया गया. जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केंद्र प्रमुख डा० आई०डी० भट्ट द्वारा कार्शाला के कार्यक्रम की रूप रेखा तथा संस्थान द्वारा किये जा रहे वन संसाधनों एवं जय विविधता संरक्षण के लिए किये जा रहे विभिन्न कार्यक्रम एवं परियोजनाओं के बारे में अवगत कराया गया। उन्होंने बताया कि कैसे बहुउपयोगी जैसे तेजपात, बांज तथा आंवला इत्यादि के पौधारोपण से ग्रामीणों की आजीविका को संवर्धित किया जा सकता है।

दिगतोली ग्राम के पूर्व ब्लॉक प्रमुख पूरनचंद पाटनी जी द्वारा गाँव के बंजर भूमि क्षेत्र में बहुउपयोगी पौधों के रोपने से हो रहे लाभ पर प्रकाश डाला गया. इसी क्रम में उन्होंने बताया कि कैसे औषधीय जड़ी बूटी के कृषिकरण द्वारा किसानों की आजीविका बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि कैसे पर्यावरण संस्थान विगत कई वर्षों से हमारे गाँव तथा ग्रामीणों से निरंतर जुड़ा हुआ है. उन्होंने यह भी बताया कि वैज्ञानिकों के विचारों का महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है।

गरूडा ग्राम के सरपंच मोहन चन्द्र पाण्डेय जी द्वारा अपने विचार रखे गए. उन्होंने बताया कि कैसे संस्थान के विभिन्न तकनीकी ज्ञान द्वारा विभिन्न बहुउपयोगी पादप प्रजातियों का संरक्षण किया जा रहा है. इसी क्रम में संस्थान के निदेशक महोदय द्वारा हिमालयी क्षेत्र में किये जा रहे शोध कार्यों पर प्रकाश डाला गया उन्होंने तीन प्रमुख बिन्दुओं पर विशेष प्रकाश डाला जिसमें प्रथम बिंदु जलवायु परिवर्तन से हो रहे बदलाव तथा अनुकूलन तथा लचीलापन लाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उनके द्वारा बताया गया कि परम्परागत ज्ञान की वैज्ञानिक परिभाषा ढूंढने की आवश्यकता है जिससे उसे पूर्ण विज्ञान की धारा से जोड़ा जा सके. तद्पश्चात उनके द्वारा समस्त ग्रामवासियों को संस्थान की कार्यप्रगति पर प्रकाश डाला कि कैसे हम सामूहिक भूमि के विकास के कार्य कर सकते हैं.तथा एक साल की रूपरेखा बना सकते हैं. उन्होंने बताया कि कैसे हिमालयी क्षेत्र में विगत कई वर्षों से कृषिकरण की पद्धति में बदलाव आया है और हमें आज के इन बदलावों से हो रहे प्रभावों के अनुकूलन के बारे में बताया. 

संस्थान के वैज्ञानिक डा० आशीष पाण्डेय ने समस्त प्रतिभागियों, वैज्ञानिकों तथा संस्थान के निदेशक, शोधार्थियों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। इस कार्यशाला में संस्थान के शोधार्थी दीप चन्द्र तिवारी, नरेन्द्र परिहार, प्रियदर्शी मौर्य तथा दीपक बिष्ट आदि मौजूद रहे.

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