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केंद्र सरकार, नरेंद्र मोदी से नाराज मणिपुर के लोग, 220 से अधिक मौतें, 60000 बेघर, चुनाव नहीं, शांति - सुरक्षा चाहिए, हिंसा जारी, चुनाव रोकने की मांग People of Manipur angry with Central Government, Narendra Modi, more than 220 deaths, 60000 homeless, no elections, need peace and security, violence continues, demand to stop elections



इंफाल। सरकारी जर्मन समाचार सेवा डायचे वैले के अनुसार, भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की राजधानी इंफाल के एक राहत शिविर में करीब एक साल से रह रहे ओनियम सिंह का कहना है कि हम बीते 11 महीनों से अपने ही घर में बेगाने हो गए हैं। वोट डालने से हमारी समस्या हल नहीं होगी। सरकार ने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया है। केंद्र ने जब इतने दिनों तक राज्य के लोगों के बारे में नहीं सोचा तो इस समय चुनाव भी नहीं कराना चाहिए था. हमें चुनाव नहीं बल्कि शांति और सुरक्षा की जरूरत है।

मालूम हो कि मणिपुर में आदिवासी कुकी और सत्तारूढ़ मैतई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा को लगभग एक साल हो गया है। हिंसा में करीब 200 लोगों ने जान गंवाई और 50 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए। जातीय हिंसा ने मणिपुर की तस्वीर ही बदल दी। इसी माहौल में राज्य की दो लोकसभा सीटों, इनर मणिपुर और बाहरी मणिपुर के लिए 19 और 26 अप्रैल को मतदान होना है। आंतरिक मणिपुर और बाहरी मणिपुर के कुछ इलाकों में पहले चरण में मतदान होगा जबकि बाहरी मणिपुर के बाकी इलाकों में 26 अप्रैल को मतदान होगा।

जातीय हिंसा की आग में मई 2023 से झुलस रहे मणिपुर में आम लोग फिलहाल चुनाव को लेकर उत्साहित नहीं दिखते। दिल्ली स्थित मैतेई संगठन दिल्ली मैतेई समन्वय समिति (डीएमसीसी) ने मुख्य चुनाव आयुक्त और मुख्य न्यायाधीश को पत्र भेज कर मणिपुर में लोकसभा चुनाव स्थगित करने की मांग की है। मणिपुरी मुस्लिम ऑनलाइन फोरम के अध्यक्ष रईस अहमद भी कहते हैं कि राज्य में हिंसा खत्म होने के बाद ही चुनाव कराया जाना चाहिए था। राज्य की दोनों सीटों पर करीब 1.5 लाख मुस्लिम वोटर हैं। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच सुलह कराने में मुस्लिम समुदाय ने अहम भूमिका निभायी थी।

मणिपुर में चुनाव को लेकर विपक्षी खेमे में भी डर का माहौल है। बीते सप्ताह कांग्रेस की एक चुनावी सभा में कुछ हथियारबंद लोगों ने फायरिंग शुरू कर दी थी। उसमें तीन लोग घायल हो गए थे। उसके बाद पार्टी ने केंद्रीय चुनाव आयोग से घाटी में सुरक्षा मजबूत करने की मांग की। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मेघाचंद्र कहते हैं कि मणिपुर में इन हालात में शांति से चुनाव हो पाना मुश्किल है। राज्य में कानून व व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह ढह चुकी है। दोनों सीटों पर जीत का दावा करने वाले मेघाचंद्र ने कहा, यह डबल इंजन की सरकार की नाकामी है। उनका सवाल था कि मौजूदा माहौल में अगर उम्मीदवार अपने वोटरों तक ही नहीं पहुंच सकेगा तो मुक्त व निष्पक्ष चुनाव कैसे संभव है?

एक साल से जारी हिंसक संघर्ष के कारण राज्य के तमाम इलाके संवेदनशील की श्रेणी में हैं। करीब पांच महीनों की शांति के बाद नए सिरे से शुरू होने वाली हिंसा ने लोगों में आतंक पैदा कर दिया है। शायद यही उनकी चुप्पी की वजह है। लोग चुनाव के बारे में बात ही नहीं करना चाहते। ऐसे में मणिपुर में इस बार भाजपा फंसी हुई नजर आ रही है।

भाजपा नेता यहां इनर मणिपुर की सीट पर जीत के दावे जरूर कर रहे हैं लेकिन अनौपचारिक बातचीत में वे भी मानते हैं कि इस बार जीत की राह आसान नहीं होगी। मैतेई हों या कुकी, लोगों में नाराजगी इस बात पर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ना तो राज्य का दौरा किया है और न ही इस पर कोई टिप्पणी की है। लोकसभा चुनाव के दौरान भी उनकी मणिपुर में आने की कोई योजना नहीं है। हिंसा इस बार राज्य में सबसे बड़ा मुद्दा भी है। इसके अलावा हिंसा के कारण लोगों का विस्थापन और कुकी उग्रपंथी संगठनों के खिलाफ अभियान रोकने पर हुआ समझौता भी बड़ा मुद्दा है। सत्तारूढ़ बीजेपी जहां म्यांमार से होने वाली घुसपैठ को इसकी वजह बताते हुए मणिपुरी लोगों के वजूद की रक्षा करने का दावा कर रही है। विपक्षी दल इस हिंसा के लिए सरकार और भाजपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

पिछली बार भाजपा ने इनर मणिपुर सीट जीती थी। आदिवासी बहुल आउटर मणिपुर सीट पर नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) उम्मीदवार की जीत हुई थी। राज्य में असामान्य हालात की वजह से आदिवासियों के लिए आरक्षित आउटर मणिपुर सीट पर दो चरणों में19 और 26 अप्रैल को मतदान होगा। इनर मणिपुर सीट के लिए 19 अप्रैल को एक चरण में ही वोट डाले जाएंगे। 28.55 लाख की आबादी वाले इस राज्य में 20 लाख से ज्यादा वोटर हैं।  भाजपा ने इनर मणिपुर सीट पर इस बार पिछली बार के विजेता डॉ. राजकुमार सिंह के बदले राज्य सरकार के मंत्री टी. बसंत कुमार सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है। आउटर मणिपुर सीट पर उसने अपने सहयोगी नागा पीपल्स फ्रंट (एनपीएफ) का समर्थन करने का ऐलान किया है। भाजपा की सहयोगी एनपीएफ ने आउटर मणिपुर सीट पर भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी के टिमोथी जिमिक को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने इनर मणिपुर सीट पर जेएनयू के प्रोफेसर ए. बिमल अकोईजम और आउटर मणिपुर सीट पर पूर्व विधायक ऐल्फ्रेड कंगम आर्थर को मैदान में उतारा है।

कुकी समुदाय ने पहले ही चुनाव में शामिल नहीं होने का ऐलान कर दिया था। इसलिए इस समुदाय से किसी ने भी नामांकन नहीं दाखिल किया है। कुकी संगठन इंडिजनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) के अध्यक्ष पी. हाओकिप ने एक बयान में कहा है कि समुदाय के लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए लेकिन हमने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला बहुत पहले ही कर लिया था। हाओकिप के मुताबिक इस समुदाय के लिए अलग स्वायत्त क्षेत्र की मांग पूरी नहीं होने तक इस समस्या का समाधान संभव नहीं है।

वैसे मणिपुर में ऐतिहासिक रूप से मतदान का प्रतिशत काफी ऊंचा रहा है। 2019 के लोकसभा के लिए दो चरणों में हुए चुनाव में आउटर मणिपुर और इनर मणिपुर सीटों पर क्रमशः 84 और 81 प्रतिशत मतदान हुआ था। लेकिन इस बार तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। आम लोगों की उदासीनता और जमीनी परिस्थिति के कारण राज्य में इस बार मतदान का प्रतिशत भी पहले के मुकाबले कम रहने का अंदेशा है। इंफाल के एक राहत शिविर में रहने वाले लोगों का कहना है कि जब जान और दो जून की रोटी के लाले पड़े हों तो भला चुनाव की किसे सूझती है ? वैसे भी पिछले एक साल में बहुत लोग अपने घरों, इलाकों से पलायन करने को मजबूर हुए हैं, उनमें से हजारों राहत शिविरों में और तमाम लोग राज्य से बाहर चले गये हैं।

वरिष्ठ भाजपा नेता और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह दावा करते हैं कि केंद्र सरकार के समर्थन से राज्य सरकार ने यहां शांति बहाल करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। इसके कारण लोग इस बार भी भाजपा का ही समर्थन करेंगे। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों को उनके इस दावे पर संदेह है। विश्लेषकों का कहना है कि मणिपुर में मतदान से ठीक पहले नए सिरे से हुई हिंसा में दो लोगों की मौत हो गई है और तीन लोग घायल हो गए हैं। ऐसे में मतदान के दौरान भी हिंसा की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। एक विश्लेषक अरुण कुमार भक्ता ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की चुप्पी से आम लोगों में भारी नाराजगी है। उनकी यह नाराजगी भाजपा के लिए भारी पड़ सकती है। कांग्रेस इस नाराजगी को अपने सियासी हित में भुनाने का प्रयास कर रही है।

भारत के दूसरे राज्यों के उलट यहां चुनावी बैनर और पोस्टर बहुत कम नजर आते हैं। उनकी बजाय जगह-जगह अवैध हथियारों को लौटाने के लिए लगे ड्रॉप बाक्स और उन पर अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में हथियारों को लौटाने की अपील लिखी नजर आती हैष्ं बीते साल शुरू हुई हिंसा के दौरान मैतेई और कुकी संगठनों ने पुलिस थानों और दूसरी जगहों से भारी तादाद में हथियार लूट लिए थे। मुख्यमंत्री की अपील के बाद कुछ लोगों ने हथियार जरूर लौटाए हैं। लेकिन सरकारी अधिकारियों के मुताबिक अब भी 4000 से ज्यादा ऐसे हथियारों का कोई पता नहीं चला है। सुरक्षा एजेंसियों को डर है कि इन हथियारों का इस्तेमाल मतदान के दौरान हो सकता है।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक वर्ष से जारी हिंसा में कम से कम 220 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग बेघर हैं। राज्य सरकार की ओर से चलाए जाने वाले 320 राहत शिविरों में करीब 59 हजार लोग रह रहे हैं। इन वोटरों को मतदान केंद्रों तक पहुंचाना चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है। फिलहाल आयोग राहत शिविरों में रहने वाले लोगों को मतदान की सुविधा मुहैया कराने के लिए तमाम औपचारिकताएं पूरी करने में जुटा है। राज्य में चुनाव के शांतिपूर्ण आयोजन लिए केंद्रीय बलों की 200 से ज्यादा कंपनियां तैनात की गई हैं और पूरे राज्य को उच्चतम अलर्ट पर रखा गया है।


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