हिमालयी पर्यावरण संस्थान ने पिरूल से कोयला निर्माण, आजीविका संवर्धन, पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा उपयोग बढ़ाने विषयक जागरूकता कार्यशाला का किया आयोजन Himalayan Environmental Institute organizes awareness workshop on coal production from Pirul, livelihood promotion, increasing eco-friendly energy use
अल्मोड़ा। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा के तत्वाधान में दिनांक 17 मार्च 2023 को उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद , देहरादून द्वारा वित्तपोषित परियोजना के अंतर्गत उत्तराखंड के ग्रामीण समुदाय को पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा हेतु बढ़ावा देने हेतु चीड़ के पिरूल से कोयला बनाने विषयक एक दिवसीय जागरूकता कार्यशाला आयोजित की गयी, जिसके तहत विभिन्न विश्व विद्यालयों एवं शोध संस्थानों के छात्रों व शोधार्थियों को आजीविका संवर्धन हेतु चीड़ के पिरूल से कोयला बनाने एवं पर्यावरण अनुकूल ऊर्जा हेतु इसके विभिन्न उपयोगों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी.
संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सुनील नौटियाल ने घरेलू कार्बन फुटप्रिंट्स के बारे में व्याख्यान दिया एवं यह बताया कि किस प्रकार घरेलू कार्बन फुटप्रिंट्स कम करने हेतु ऊर्जा संवर्धन के उपाय किये जा सकते हैं, उन्होंने परियोजना के प्रति प्रसन्नता व्यक्त करते हुए हिमालयी क्षेत्र हेतु परियोजना की सफलता हेतु अग्रिम शुभकामनाएं दीं. तत्पश्चात परियोजना निदेशक व सामाजिक-आर्थिक विकास केंद्र की वैज्ञानिक डॉ. हर्षिता पंत जुगरान ने चीड़ के पिरूल से कोयला एवं अन्य न्यून-लागत, पर्यावरण-मित्र एवं आजीविका संवर्धन सामग्री (कागज एवं सजावटी वस्तुएं) बनाने हेतु व्याख्यान दिया. सामाजिक-आर्थिक विकास केंद्र प्रमुख डॉ. पारोमिता घोष द्वारा केंद्र की विभिन्न न्यून-लागत गतिविधियों की जानकारी दी गयी.
मुख्य वक्ता डॉ. रविन्द्र जोशी ने पर्यावरण हेतु जीवनशैली पर व्याख्यान दिया जिसमें उन्होंने प्रतिभागियों को पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली हेतु उपयोगी जानकारी प्रदान की, तत्पश्चात उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, देहरादून के डॉ. संतोष रावत ने परिषद के विज्ञान व शोध-विकास कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी दी। वसुंधरा समिति (अल्मोड़ा) के निदेशक हिमांशु जोशी ने ग्रामीण क्षेत्रों हेतु पर्यावरण अनुकूल जैव-अपशिष्ट निस्तारण पर व्याख्यान दिया। प्रतिभागियों ने पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली अपनाने तथा चीड के उत्पादों के स्वउपयोग हेतु सहमति जताई।
डॉ. दीपा बिष्ट ने सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। कार्यशाला में यूसर्क (देहरादून), हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर के उच्च-स्तरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र के डॉ.विजय कान्त पुरोहित, उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद,देहरादून के डॉ. संतोष रावत, डॉ. मनमोहन रावत, एस.एस.जे अल्मोड़ा विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के डॉ. बलवंत कुमार एवं पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. महेंद्र सिंह लोधी, डॉ. अजय गुप्ता, डॉ मनीष त्रिपाठी, डॉ ओम प्रकाश आर्य आदि एवं गढ़वाल क्षेत्रीय केन्द्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. के.सी.शेखर, डॉ अरुण कुमार जुगरान, पूर्वोत्तर क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. देवेन्द्र कुमार, डॉ.विश्फुल्ली, डॉ. मृगांक तथा ग्राफिक एरा विश्ववविद्यालय से डॉ. अमित मित्तल, पुणे से डॉ. सौरभ पुरोहित, कासेल विश्वविद्यालय (जर्मनी) से डॉ मारिया तूले आदि गणमान्य वैज्ञानिक, महिला हाट (अल्मोड़ा) से राजू कांडपाल एवं संस्थान के शोधार्थी डॉ. प्रदीप सिंह, अदिति मिश्रा, हनी भट्ट, सचिन उनियाल, ऋषभ रावल, हिमांशु बर्गली तथा विभिन्न विश्व विद्यालयों एवं शोध संस्थानों के कुल 30 शोधार्थी व परास्नातक छात्र-छात्राएं शामिल रहे।
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