1949 में 25 नवंबर को डा. भीमराव अंबेडकर लिखित भारत का संविधान अंगीकृत किया गया। संविधान सभा के अध्यक्ष राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने स्वतंत्र भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए। संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया। 26 नवंबर को भारत में संविधान दिवस मनाया जाता है। जो संविधान को हाशिये पर धकेल चुके हैं वही बढ़-चढ़ कर संविधान दिवस पर इवेंटबाजियां करते हैं। हर भारतीय को गंभीरता से संविधान से हो रहे खिलवाड़ का विरोध करते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाना को प्रतिबद्ध रहना चाहिए।
1949 में 26 नवंबर को डा. भीमराव अंबेडकर लिखित भारत का संविधान अंगीकृत किया गया। संविधान सभा के अध्यक्ष राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने स्वतंत्र भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए। संविधान 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया। 26 नवंबर को भारत में संविधान दिवस मनाया जाता है। जो संविधान को हाशिये पर धकेल चुके हैं वही बढ़-चढ़ कर संविधान दिवस पर इवेंटबाजियां करते हैं। हर भारतीय को गंभीरता से संविधान से हो रहे खिलवाड़ का विरोध करते हुए अपने संवैधानिक अधिकारों को बचाना को प्रतिबद्ध रहना चाहिए।
भारत का संविधान - सुप्रीम लॉ - यह भारत का बुनियादी कानून है, जिसने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 की जगह ली और भारत को एक सॉवरेन, सेक्युलर, सोशलिस्ट और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक बनाया।
भारत का संविधान एक पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी बनाता है और एग्जीक्यूटिव, लेजिस्लेचर और ज्यूडिशियरी की शक्तियों और कामों को तय करता है।
भारत का संविधान बुनियादी सिद्धांतों और नियमों को तय करके, यह फैसले लेने और पॉलिसी लागू करने के लिए एक स्थिर फ्रेमवर्क देता है।
भारत का संविधान बराबरी, बोलने और बोलने की आजादी, जीने का अधिकार और किसी भी धर्म को मानने की आजादी जैसे जरूरी अधिकारों की गारंटी देता है।
भारत का संविधान भारत की विविधता को पहचानता है और इसमें अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए नियम शामिल हैं।
भारत का संविधान एक स्वतंत्र ज्यूडिशियरी बनाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट सबसे बड़ा कोर्ट है, ताकि यह पक्का किया जा सके कि कानून एक जैसे लागू हों और नागरिकों को कानूनी सहारा मिले। भारतीय संविधान में प्रस्तावना के शुरुआती शब्द, हम, भारत के लोग... और डॉ. बी.आर. अंबेडकर के मशहूर उद्धरण शामिल हैं, जैसे संविधान सिर्फ वकील का डॉक्यूमेंट नहीं है, यह जीवन का जरिया है, और इसकी आत्मा हमेशा उम्र की आत्मा है। डॉ. अंबेडकर के दूसरे उद्धरण अधिकारों और कर्तव्यों के बैलेंस पर जोर देते हैं, जैसे अपने अधिकारों का मजा लो, अपने कर्तव्यों का सम्मान करो, भारत तब बढ़ता है जब दोनों बैलेंस होते हैं। भारत का संविधान प्रस्तावना से -
हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और उसके सभी नागरिकों को यह दिलाने का पक्का इरादा करते हैं, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्यायय सोचने, बोलने, विश्वास, आस्था और पूजा की आजादीय हैसियत और मौके की बराबरी और उन सभी के बीच भाईचारा बढ़ाना जो व्यक्ति की गरिमा और देश की एकता को पक्का करे।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा, संविधान सिर्फ वकील का डॉक्यूमेंट नहीं है। यह जिंदगी का जरिया है, और इसकी आत्मा हमेशा उम्र की आत्मा होती है।
हम सबसे पहले और आखिर में भारतीय हैं।
एक महान आदमी एक जाने-माने आदमी से इस मायने में अलग होता है कि वह समाज का सेवक बनने के लिए तैयार रहता है।
सही सवाल यह नहीं है कि एक नागरिक के अधिकार क्या हैं, बल्कि यह है कि एक नागरिक के कर्तव्य क्या हैं।
अपने अधिकारों का आनंद लें, अपने कर्तव्यों का सम्मान करें, भारत तब बढ़ता है जब दोनों में संतुलन होता है।
मौलिक अधिकार हमें आजादी देते हैं मौलिक कर्तव्य हमें दिशा देते हैं।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान बनाने के प्रोसेस के दौरान ऑब्जेक्टिव्स रेजोल्यूशन को एक गाइड के तौर पर इस्तेमाल करने पर जोर दिया। उनका मानना था कि जो संविधान लोगों की जिंदगी और उम्मीदों से दूर है, वह ष्काफी खालीष् है। उन्होंने कहा कि संविधान के मुख्य काम भारत को आजाद करना, गरीबी और कपड़ों की कमी को दूर करना और विकास के मौके देना हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि संविधान के जरिए सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को खत्म किए बिना यह बेकार हो जाएगा। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने भारत को एक आजाद, संप्रभु गणराज्य बनाने और उसके शासन के लिए एक संविधान बनाने के लिए संविधान सभा के संकल्प की घोषणा की।
प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान में लचीलेपन के महत्व पर जोर दिया, यह देखते हुए कि सख्ती देश के विकास में रुकावट डालती है। उन्होंने ऑब्जेक्टिव रेजोल्यूशन को कानून से भी ऊँचा बताया, जो इंसानों के दिमाग में जान फूंकता है और पुराने और नए जमाने के बीच बदलाव को दिखाता है।
बी.आर. अंबेडकर ने संविधान को सिर्फ एक कानूनी डॉक्यूमेंट से कहीं ज्यादा बताया, इसे जिंदगी का जरिया कहा, जिसकी भावना समय को दिखाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संवैधानिक नैतिकता कोई नैचुरल भावना नहीं है और इसे बढ़ावा देने की जरूरत है, खासकर ऐसे समाज में जो उनके हिसाब से नैचुरली डेमोक्रेटिक नहीं है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने कहा, हर अधिकार के साथ एक जिम्मेदारी आती है, आइए दोनों को बनाए रखें। डा. अंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान का असर उसे लागू करने वालों की ईमानदारी पर निर्भर करता है।
यहां ध्यान देने के लिए खास बात यह है कि डा. भीमराव अंबेडकर बेहतरीन संविधान लिखा, लेकिन इसे स्वीकार करवाने और लागू करवाने का मुख्य श्रेय पं. जवाहर लाल नेहरू को ही है क्योंकि सांप्रदायिक, सामंतवादी लोग इसके खिलाफ थे। वे तब भी खिलाफ थे और अब भी संविधान विरोधी काम कर रहे हैं। नेहरू ने अथक प्रयत्न कर संविधान लागू करवाया और उसके आलोक में देश का विकास किया।
प्रस्तुति: एपी भारती (पत्रकार, संपादक पीपुल्स फ्रैंड, रुद्रपुर, उत्तराखंड)
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