पिगॉट ने कहा, अमेरिकी विदेश मंत्री ने अफगानिस्तान पुनर्निर्माण मदद एवं आर्थिक विकास के लिए ईरान स्वतंत्रता एवं परमाणु प्रसार-रोधी अधिनियम (आईएफसीए) के तहत 2018 में जारी प्रतिबंध छूट को रद्द कर दिया है। यह आदेश 29 सितंबर, 2025 से प्रभावी हो जाएगा।
थॉमस पिगॉट ने कहा कि प्रतिबंध के प्रभावी हो जाने के बाद चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वाले या संबंधित गतिविधियों में शामिल लोग प्रतिबंधों के दायरे में आ सकते हैं। अमेरिकी प्रशासन के इस निर्णय से भारत भी प्रभावित होगा क्योंकि वह ओमान की खाड़ी में स्थित चाबहार बंदरगाह पर एक टर्मिनल के विकास से जुड़ा हुआ है। भारत ने 13 मई, 2024 को इस बंदरगाह के संचालन के लिए 10 वर्षीय अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने वर्ष 2003 में ही इस बंदरगाह के विकास का प्रस्ताव रखा था ताकि भारतीय माल के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का एक प्रवेश द्वार मुहैया कराया जा सके। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) नामक एक सड़क और रेल परियोजना बनाई जानी है।
बताया जाता है कि 7,200 किलोमीटर लंबी यह परियोजना भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए प्रस्तावित है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण चाबहार बंदरगाह के विकास की रफ्तार काफी धीमी रही।
मालूम हो कि अमेरिका ने 2018 में चाबहार बंदरगाह परियोजना को प्रतिबंधों से छूट दी थी। उस समय कहा गया था कि अफगानिस्तान को गैर-प्रतिबंधित वस्तुओं की आपूर्ति और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात के लिए यह छूट जरूरी है। हालांकि अब अमेरिकी प्रशासन की नई नीति के तहत यह छूट समाप्त हो जाएगी। भारत ने 2023 में चाबहार बंदरगाह का उपयोग अफगानिस्तान को 20,000 टन गेहूं की सहायता भेजने के लिए किया था। इसके पहले 2021 में इसके जरिये ईरान को पर्यावरण के अनुकूल कीटनाशकों की आपूर्ति भी की गई थी।





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