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हिमालयी पर्यावरण संस्थान ने किया जैव विविधता एकीकृत डेटाबेस निर्माण, नीतियों, सहयोग इत्यादि पर हितधारकों के साथ विचार-विमर्श Himalayan Environment Institute held discussions with stakeholders on biodiversity integrated database creation, policies, collaboration etc



अल्मोड़ा (उत्तराखंड) आज 8.अगस्त 2024। गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल अल्मोड़ा में राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु नीति को मुख्यधारा में लाने के लिए हिमालयी जैव विविधता के एक एकीकृत डेटाबेस का निर्माण विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल ने कार्यशाला में उपस्थित सभी प्रतिभागियों एवं विषय विशेषज्ञों का स्वागत किया तथा उनकी इस कार्यशाला में सहभागिता हेतु आभार व्यक्त किया. संबोधन में प्रो. सुनील नौटियाल ने संस्थान तथा इसकी क्षेत्रीय इकाइयों द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर किये जा रहे शोध व विकासात्मक कार्यो और हितधारकों द्वारा इनसे लिये जा रहे लाभों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि हिमालय में विभिन्न प्रकार की जैव विविधता का व्यापक भंडार है इसके बावजूद भी हिमालयी जैव विविधता के आंकड़े अभी तक सीमित हैं. इसके उचित कार्यान्वयन हेतु संस्थान व्यापक स्तर पर इस परियोजना के माध्यम से आंकड़ों का एकत्रीकरण करके उनको एक प्लेटफॉर्म में लाने हेतु प्रयासरत है जो भविष्य में जैव विविधता संरक्षण कार्य के लिए नीति निर्माणकर्ताओं और हितधारकों हेतु लाभदायक साबित होगी. संस्थान सूर्यकुंज को एक मॉडल मानते हुए विभिन्न सेंचुरियों का निर्माण कर रहा है.

संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं परियोजना प्रमुख डा. आई.डी. भट्ट ने कार्यशाला के मुख्य अतिथि सुरेन्द्र सिंह मेहरा, कार्यक्रम निदेशक (एस एंड टी), नीति आयोग, परियोजना के तकनीकी सलाहकार समिति के डॉ. जी.एस. रावत, पूर्व निदेशक, डब्ल्यू.आई.आई., देहरादून, डॉ. कैलाश चंद्र, पूर्व निदेशक, जेड.एस.आई., कोलकाता तथा डा० एस.एस. सामंत, पूर्व निदेशक, हिमालयी वन अनुसंधान संस्थान, शिमला, डॉ. टी.वी.रामचंद्र, आई.आई.एस.सी., बेंगलुरु, सुश्री अर्चना चटर्जी, आई.यू.सी.एन., डॉ. राजीव पांडे, प्रमुख, वानिकी सांख्यिकी प्रभाग, आई.सी.एफ.आर.ई., देहरादून, डा. ललित कुमार शर्मा, जेड.एस.आई., डा. एन.सी. जोशी, मानसखंड विज्ञानं केंद्र, अल्मोड़ा को पुष्प गुच्छ प्रदान कर सम्मानित किया।

डा. आई.डी. भट्ट ने इस एक दिवसीय कार्यशाला की रूपरेखा से सभी प्रतिभागियों को अवगत कराया और सभी विषय विशेषज्ञों के सुझाओं एवं मार्गदर्शन की अपेक्षा की. उन्होंने इस कार्यशाला को जैव विविधता डेटाबेस निर्माण हेतु महत्वपूर्ण बताया और अवगत कराया कि नीति आयोग, भारत सरकार द्वारा पर्यावरण संस्थान को हिमालयी जैव विविधता डेटाबेस को तैयार करने, इलेक्ट्रॉनिक पी.बी.आर. बनाने, पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण कर सभी जानकारियों को मॉडर्न टूल्स एवं तकनीकी सॉफ्टवेयर में जांच कर एक पोर्टल तैयार करके सूचना को पब्लिक डोमेन में देने की जिम्मेदारी दी है। जिसमें नीति आयोग, एन.बी.ए., स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड, एफ.एस.आई. इत्यादि संस्थाओं का सहयोग लिया जा रहा है.

मुख्य अतिथि सुरेंद्र सिंह मेहरा, कार्यक्रम निदेशक (एस एंड टी), नीति आयोग ने संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यशाला की प्रशंसा की और सभी प्रतिभागियों को नीति आयोग द्वारा जैव विविधता संरक्षण हेतु लिए गए निर्णय एवं पालिसी निर्माण इत्यादि की जानकारी साझा की. उन्होंने बताया कि हिमालयी जन समुदाय के पास पारंपरिक ज्ञान का भंडार है जिसकी बदौलत वे विभिन्न पादप प्रजातियों का उपयोग करते हैं. लेकिन अभी भी उक्त जानकारी के समुचित दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं जिसमे इलेक्ट्रॉनिक पी.बी.आर सहायक सिद्ध हो सकते हैं. उन्होंने हिमालयी जैव विविधता का एकत्रीकरण, आंकलन एवं द्स्तावेजीकरण हेतु अन्य संस्थानों के साथ संयुक्त रूप से कार्य करने की बात कही जिससे निर्धारित तय सीमा में परियोजना को धरातलीय स्तर पर लाया जा सके.

परियोजना के तकनीकी सलाहकार समिति के डॉ. जी.एस. रावत, पूर्व निदेशक, डब्ल्यू.आई.आई., देहरादून ने हिमालयी जैव विविधता की जानकारी साझा करते हुए बताया कि वर्तमान जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, मानव जनित दबावों, अतिक्रमणकारी पादप प्रजातियों के असीमित विस्तार इत्यादि से जैव विविधता प्रभावित हो रही है जिसकी उचित जानकारी अभी तक उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा कि पर्यावरण संस्थान द्वारा संचालित हिमालयी डेटाबेस परियोजना इस कमी को पूर्ण करने में अहम् भूमिका निभाएगी. साथ ही परियोजना आधारित जानकारी के पश्चात् नीति आयोग को भविष्य हेतु फ्रेमवर्क तैयार करने में मदद मिलेगी.

डॉ. कैलाश चंद्र, पूर्व निदेशक, जेड.एस.आई., कोलकाता ने कहा कि वर्तमान समय में हम सबको मिलकर हिमालयी जैव विविधता का आंकलन करना चाहिए जो डेटाबेस निर्माण में सहायक सिद्ध होगा. उन्होंने हिमालयी क्षेत्रों में पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की जंतु एवं पादप प्रजातियों एवं इनकी वर्तमान स्थिति से अवगत कराया. कार्यशाला में उपस्थित विषय विशेषज्ञ डॉ. टी.वी.रामचंद्र, आई.आई.एस.सी., बेंगलुरु ने जैव विविधता संरक्षण में कर्नाटक राज्य द्वारा किये गए शोध कार्यों एवं डेटाबेस एकत्रीकरण की विधियों से सबको अवगत कराया. उन्होंने कहा कि कर्नाटक राज्य द्वारा प्रयोग किये गए शोध क्रियाविधियों को हिमालयी डेटाबेस निर्माण हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है. उन्होंने जैविक एवं अजैविक पैरामीटर, इकोसिस्टम सर्विसेज, एग्रीकल्चर इकोसिस्टम, फारेस्ट इकोसिस्टम इत्यादि के बारे में भी बताया.

डॉ. राजीव पांडे, प्रमुख, वानिकी सांख्यिकी प्रभाग, आई.सी.एफ.आर.ई., देहरादून ने बताया कि वर्तमान में मॉडर्न सांख्यिकी विधियों का उपयोग करके विविध डेटासेट का परीक्षण किया जा सकता है जिसकी सहायता से हिमालयी जैव विविधता डेटाबेस का समुचित उपयोग हो सके. कार्यशाला में मौजूद सुश्री अर्चना चटर्जी, आई.यू.सी.एन. द्वारा डेटा एकत्रीकरण, आंकलन एवं फील्ड गतिविधियों हेतु आई.यू.सी.एन. की गतिविधियों से अवगत कराया. विषय विशेषज्ञ डा. एस.एस. सामंत, पूर्व निदेशक, हिमालयी वन अनुशंधान संस्थान, शिमला ने हिमाचल प्रदेश में किये गए पादप शोध कार्यों की जानकारी से अवगत कराया. उन्होंने संस्थान को स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के साथ मिलकर इलेक्ट्रॉनिक पी.बी.आर. तैयार करने की बात कही. साथ ही इस विषय में प्रकाशित शोध पत्रों का मूल्यांकन करके डेटाबेस एकत्रीकरण और जैव विविधता पोर्टल तैयार किया जा सकता है.

संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डा. जी.सी.एस. नेगी ने संस्थान द्वारा विगत तीन दशकों में हिमालयी क्षेत्रों में किये गए शोध एवं विकास कार्यों की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा पूर्व में भी स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड, उत्तराखंड को पी.बी.आर. तैयार करने में तकनीकी सहायता प्रदान के गयी थी. संस्थान ने ग्राम कटारमल, जिला अल्मोड़ा एवं डीडीहाट ब्लाक का पी.बी.आर. भी तैयार किया है जो वर्तमान परियोजना कार्य में सहायक सिद्ध होगा. इसके पश्चात चार विभिन्न तकनीकी सत्रों के द्वारा सामाजिक, आर्थिक एवं पर्यावरणीयध्पारिस्थिकीय विषय पर आधारित समूह चर्चा के माध्यम से ज्ञान का आदान प्रदान किया गया तथा इन विषयों पर रिसोर्स पर्सन्स तथा प्रतिभागियों के द्वारा प्रस्तुतीकरण दिया गया.

संचालन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आई.डी. भट्ट तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एस.के. राणा ने किया। यहां डा. हितेंद्र पडलिया, भारतीय सुदूर संवेदन केंद्र, देहरादून, त्यागाराजू, नीति आयोग, दिल्ली सहित पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक डा. के.सी. सेकर, ई. एम.एस. लोधी, डॉ. सतीश आर्य, डा. के.एस. कनवाल, डा. एम. सरकार, डा. कैलाश गैड़ा, डॉ. अरुण जुगरान, डा. आशीष पाण्डे, डॉ. सुबोध ऐरी, श्री महेश चन्द्र सती, डा. अमित बहुखंडी तथा ई. अंकित धनै आदि उपस्थित रहे।

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